जब मंच पर लालकृष्ण आडवाणी से मांगे नकद चार हजार रूपए, गुस्सा हुए आडवाणी
— दरबार हॉल
— सेशन— 'अनस्क्रिप्टेड
— स्पीकर्स— विधु विनोद चोपड़ा एंड अभिजात जोशी इन कन्वर्सेशन विद् वाणी त्रिपाठी टिक्कू

जयपुर. जेएलएफ के वर्चुअल एडिशन में फिल्म निर्माता—निर्देशक विधु विनोद चोपडा ने अपने जीवन के कई पन्नों को खोला। उन्होंने स्क्रीनप्ले राइटर अभिजात जोशी और वाणी त्रिपाठी टिक्कू के साथ बातचीत की। सेशन के दौरान, विधु विनोद चोपड़ा की जर्नी, व्यक्तित्व, फिल्म बजट, सिद्धांत, फिल्म शैली आदि कई अन्य विषयों पर चर्चा हुई। विधु विनोद चोपड़ा ने किताब में भारतीय राजनीति के दिग्गज और मशहूर राजनेता लालकृष्ण आडवाणी से जुड़ा अपना एक दिलचस्प किस्सा भी साझा किया है। जब राष्ट्रीय पुरस्कार लेने के बाद आडवाणी के गुस्से का शिकार हो गए थे। साल 1976 में शॉर्ट फिल्म 'मर्डर एट मंकी हिल' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। उस समय दोस्तों से 1200 रुपए उधार लिए हुए थे, सोचा था अवॉर्ड के रूप में चार हजार रुपए मिलेंगे और इससे वे पूरा उधार चुका देंगे। चोपड़ा ने किताब में बताया है कि जब उन्हें पुरस्कार और पुरस्कार की राशि देने के लिए मंच पर बुलाया गया था, तब उस समय नीलम संजीव रेड्डी भारत के राष्ट्रपति थे और लालकृष्ण आडवाणी सूचना और प्रसारण मंत्री थे। राष्ट्रपति ने उन्हें एक भूरे रंग के लिफाफे के साथ एक गोल्ड मेडल दिया। मुझे इस लिफाफे में 4000 रुपए की नकद राशि की उम्मीद थी, लेकिन जब पता चला कि लिफाफे में एक डाक बॉन्ड था, जिसे सात वर्षों में एन्कोड किया जा सकता है, तो वह निराश हो गए। उसी समय आडवाणी से सीधे नकदी को लेकर पूछ लिया था।
इसके बाद आडवाणी उन्हें यह समझाने की कोशिश की कि इस डाक बॉन्ड से बाद में पैसा मिलेगा, लेकिन मैं नकद की मांग कर रहा था। वे कल शास्त्री भवन में मिलने के लिए कहते रहे। अगले दिन उनसे शास्त्री भवन में मिला, उन्होंने बीते दिन के लिए जमकर डाटा। इसके बाद मैंने उधार रुपयों की बात बताई। यह बात सुनकर आडवाणी का दिल पिघल गया। जिसके बाद न केवल पुरस्कार राशि दी, बल्कि नाश्ते के रूप में अंडे और पराठे का भी ऑर्डर दिया। इसके बाद आडवाणी जी से घर के सदस्य के रूप में रिश्ता बन गया।
'शिकारा' पर खर्च किया 'थ्री इडियट' जितना बजट
बड़ी फिल्मों को कम बजट में बनाने पर बात करते हुए, विधु विनोद चोपड़ा ने कहा कि उनकी बहुत ज्यादा जरूरतें नहीं है। जब एक फिल्म निर्माता एक निश्चित बजट से बढ़कर अपनी फिल्मों में निवेश करता है, तो वह धीरे-धीरे खुद को सीमित करने लगता है और अपनी स्वतंत्रता को खो देता है। 'शिकाराÓ फिल्म मुझे कश्मीर दर्शाना था, तो उसे बनाने में 3 इडियट्स जितना पैसा लग गया। क्योंकि मैं हर एक दृश्य को रीयल बनाने में जुडा था। उन्होंने कहा कि एक ही थीम पर फिल्म क्यों बनाई जाए। बचपन में पापा को जब मैंने कहा था कि मुझे डायरेक्टर बनना है तो उन्होंने तू कहां मुम्बई जाकर फिल्में बनाएगा। फिर उन्होंने जो काम करो चाहे मोची बनो, लेकिन सबसे अच्छा मोची बनके दिखाओ। मैं अब भी यही मानता हूं इसलिए एक जगह रुकने की बजाए अपने काम को बेहतरीन बनाने पर ध्यान देता हूं।
फिल्म के तीन चीजे महत्वपूर्ण
उन्होंने कहा कि मैं हमेशा तीन बातें को दिमाग में रखता हूं, फिल्म में एंटरटेनमेंट होना चाहिए, कहानी की आत्मा बनी रहनी चाहिए और फिल्म बनाते वक्त यह ध्यान रखों की यह खुद की आखिरी फिल्म है। ऐसे में क्रिएशन कमाल का निकलकर आता है।
चोपड़ा को हमेशा शिक्षक के रूप में देख
अभिजात जोशी ने कहा कि जब से मैं विधु विनोद चोपड़ा से मिला हूं, मैंने हमेशा उन्हें अपने शिक्षक के रूप में देखा है। मैंने हमेशा उनके विजन पर ध्यान दिया है और उन तरीकों की तलाश की, जिससे कि मैं उनके विजन को हासिल करने में उनकी मदद कर सकूं। कुछ कहानियां इतनी महत्वपूर्ण होती हैं कि वे आपके दिमाग में कई वर्षों तक बनी रहती हैं और यह ऐसे व्यक्ति है जिनके अंदर कई ऐसी कहानियां जीवित हैं।
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