
कालबेलिया नृत्य। फोटो - ANI
Rajasthan : राजस्थान और नृत्य का गहरा, जीवंत कनेक्शन है। राजस्थान में नृत्य सिर्फ़ कला नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास, परंपरा और जीवन का अभिन्न हिस्सा है। राजस्थान की मिट्टी में रेगिस्तान की लय, राजघरानों की शान, लोक कथाओं की गूंज और उत्सवों की रौनक बसती है। यह सभी नृत्य के रूप में फूटती है। राजस्थान में 19 नवंबर से घूमर महोत्सव मनाया जाएगा। घूमर महोत्सव की चर्चा होने के साथ अब एक सवाल सभी की जुबां पर है कि राजस्थान में मुख्यत: कितने नृत्य हैं। आकंड़ों के अनुसार राजस्थान में कई नृत्य हैं जो देसी-विदेशी पर्यटकों को लुभाते हैं।
सबसे पहले हम घूमर नृत्य की बात करते हैं। यह राजस्थान का एक पारंपरिक लोक नृत्य है। मुख्य रूप से महिलाएं इस नृत्य को घाघरा, चोली और ओढ़नी पहन कर करती हैं। भील और राजपूत महिलाओं का यह प्रसिद्ध चक्रीय नृत्य है। इसमें घाघरा घूमता है। हाथों की मुद्राएं कथाएं कहती हैं। घूमर नृत्य होली, गणगौर, तीज पर अनिवार्य है।
कालबेलिया नृत्य पूरी दुनिया में फेमस है। विदेशी तो इस नृत्य के दीवाने हैं। कालबेलिया नृत्य को यूनेस्को ने वर्ष 2010 में अमूर्त सास्कृतिक धरोहर सूची में शामिल किया है। कालबेलिया राजस्थान की सपेरा जाति का नृत्य है। ढोलक-बीन की ताल पर महिलाएं अपने लचीले शरीर के जादू से दर्शकों को सम्मोहित कर लेती हैं। कांच के टुकड़ों व जरी-गोटे से तैयार काले रंग की कुर्ती, लहंगा व चुनरी पहनकर ये नृत्य किया जाता है।
राजस्थान का कच्छी घोड़ी एक और फेमस नृत्य है। यह एक पुरुष प्रधान नृत्य है। इसमें घोड़ी का कॉस्टयूम पहनकर ढोल की थाप पर डांस किया जाता है। यह देखने में बहुत मजेदार होता है। यह कच्छी घोड़ी बांस की बनती है। उसे कपड़े, गोटे और जरी से सजाया जाता है। फिर लगाम डाली जाती है। राजस्थान में लोक देवता तेजा जी की आराधना में इस लोक नृत्य को करते हैं।
गैर नृत्य कला होली और जन्माष्टमी जैसे त्योहारों पर देखने को मिलती है। गोल घेरे में इस नृत्य की संरचना होने के कारण यह "घेर" और कालांतर में "गैर" के नाम से पुकारे जाने लगा है। गैर नृत्य करने वालों को "गैरिया" कहते हैं। यह प्रसिद्ध लोक नृत्य पुरुषों द्वारा सामूहिक रूप से गोल घेरा बनाकर ढोल, बांकिया, थाली आदि वाद्य यंत्रों के साथ हाथ में डंडा लेकर किया जाता है। मेवाड़ के गैरिए नृत्यकार सफेद अंगरखा, धोती व सिर पर केसरिया पगड़ी धारण करते हैं, जबकि बाड़मेर के गैरिए सफेद ओंगी, (लंबी फ्रॉक) और तलवार के लिए चमड़े का पट्टा धारण करते हैं। इसकी उत्पत्ति भील समुदाय से हुई है।
कठ का अर्थ है 'लकड़ी' और पुतली का अर्थ है 'बेजान गुड़िया'। कठपुतली कहानियों, लोककथाओं, पौराणिक कथाओं और उनमें से कुछ सामाजिक समस्याओं को दर्शाती एक प्रसिद्ध नृत्य शो है। जिसे कठपुतली कलाकारों द्वारा विशिष्ट संगीत और गायन के साथ पेश किया जाता है। गुड़िया अधिकतर आम की लकड़ी से बनी और कपास से भरी होती हैं, लगभग डेढ़ फीट ऊंची होती हैं। तारों की मदद से कठपुतली कलाकार इसे संचालित और नियंत्रित करते हैं। यह मनोरंजक लोक नृत्य 1000 साल से भी अधिक पुराना है। राजस्थान में भाट जनजाति ने इसे शुरू किया है।
राजस्थान के पाली जिले के पादरला गांव से तेरहताली नृत्य शुरू हुआ था। कामदा जनजाति की महिलाएं इस नृत्य को करती हैं। महिलाएं अपने शरीर पर तेरह मजीरे बांध कर जीवंत और सुंदर नृत्य करती हैं। आपस में टकराने पर ये मंजीरें मधुर ध्वनि उत्पन्न करते हैं। कभी-कभी वे अपने मुंह में तलवार और सिर पर घड़ा रखकर लोक नृत्य करती हैं। पुरुष कलाकार लोकगीत गाते हैं। पुरुष पखवाजा, ढोलक, झांझर, सारंगी और हारमोनियम जैसे विभिन्न वाद्ययंत्र बजाते हैं। नृत्य की मुख्य किरदार महिलाएं बाबा रामदेव की प्रतिमा के सामने ज़मीन पर बैठकर नृत्य करती हैं।
राजस्थान में 19 नवंबर से प्रदेश के सातों संभागीय मुख्यालयों में एक साथ घूमर महोत्सव 2025 का आयोजन किया जाएगा। इन 7 संभाग में जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, अजमेर, भरतपुर, कोटा और उदयपुर शामिल हैं। घूमर नृत्य राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न अंग है।
Published on:
13 Nov 2025 08:30 am
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