दरअसल, राम जन्मभूमि विवाद काफी पुराना है। इसकी कानूनी जंग आज से लगभग 135 साल पहले शुरू हुई थी और भगवान श्रीराम ( रामलला ) लगभग 104 साल बाद 1989 में पक्षकार बने। जब रामलला पक्षकार बने तो कोई भी इसका विरोध नहीं किया।
भगवान श्रीराम के प्रतिनिधि बने देवकीनंदन अग्रवाल देवकीनंदन अग्रवाल इलहाबाद हाईकोर्ट के जज थे। देवकीनंदन अग्रवाल 1977 से 1983 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश रह चुके थे। रिटायर होने के बाद उन्होंने रामलला ( नाबालिग ) के मित्र के नाते अदालत में मुकदमा दायर कर कहा कि मुकदमे में रामलला को पार्टी बनाया जाए, क्योंकि विवादित इमारत में तो रामलला विराजमान हैं और इस वक्त इमारत पर उनका ही कब्जा है। इसके बाद हाईकोर्ट ने रामलला ( मूर्ति ) को पार्टी बनाया।
अयोध्या विवाद से संबंधित 5 मुकदमे थे दायर दरअसल, अयोध्या विवाद से संबंधित 5मुकदमे दायर किए गए थे। जिसमें से अंतिम और 5वां मुकदमा ( संख्या 236/1989 ) भगवान रामलला विराजमान की ओर से 1 जुलाई, 1989 को देवकीनंदन अग्रवाल ने दायर किया था। कानून के जानकार देवकीनंदन अग्रवाल ने भगवान राम के निकट मित्र के रूप में अपने को पेश किया।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, प्राण-प्रतिष्ठित मूर्ति एक जीवित इकाई है और अपना मुकदमा लड़ सकती है। लेकिन प्राण-प्रतिष्ठित मूर्ति नाबालिग मानी जाती है, इसलिए उनका मुकदमा लड़ने के लिए किसी एक व्यक्ति को माध्यम बनाया जाता है।
न्यायालय ने रामलला का मुकदमा लड़ने के लिए देवकीनंदन अग्रवाल को रामलला के अभिन्न सखा के रूप में अधिकृत किया। न्याय प्रक्रिया संहिता की धारा 32 मानती है कि विराजमान ईश्वर ( मूर्ति ) को एक व्यक्ति माना जाता है। उसे एक व्यक्ति मानकर पक्षकार बनाया जा सकता है। इसी आधार पर अदालत ने उनकी याचिका मंजूर कर ली।
देवकीनंदन अग्रवाल द्वारा दायर मुकदमे में अदालत से मांग की गई थी कि राम जन्मभूमि अयोध्या का पूरा परिसर वादी ( देव-विग्रह ) का है। इसलिए राम जन्मभूमि पर नया मंदिर बनाने का विरोध करने वाले या इसमें किसी प्रकार की आपत्ति या बाधा खड़ी करने वाले प्रतिवादियों को उन्हें कब्जे से हटाने से रोका जाए।
देवकीनंदन अग्रवाल के निधन के बाद विश्व हिंदू परिषद के त्रिलोकीनाथ पांडेय रामलला के मित्र के तौर पर पैरोकार रहे। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान रामलला के मित्र के तौर पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील के. परासरण ने 92 साल के उम्र में पक्ष रखा और आज ( शनिवार ) 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने रामलाल के पक्ष में फैसला सुनाया।