ये भी पढ़ें- अयोध्या के श्रीराम ओरक्षा में हैं विराजमान? यहां पर भी फैसले से पहले सुरक्षा-चाक चौबंद कर दिए गए हैं। इस ‘अयोध्या’ को मध्यप्रदेश में ओरछा के नाम से जाना जाता है। ओरछा में भगवान राम का ही शासन है, दिन के चारों पहर में पुलिस जवानों के द्वारा भगवान राम को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है।
दरअसल, ओरछा में राम भगवान नहीं राजा हैं, कहा जाता है कि निवाड़ी जिले में आज भी अगर कोई डीएम और एसपी ज्वाइन करता है तो वह राजा राम को ही रिपोर्ट करता है। भगवान राम का यहां कोई मंदिर भी नहीं हैं। वह महल में ही वास करते हैं। ऐसे में यह जनना जरूरी है कि भगवान राम ओरछा के राज क्यों हैं?
राष्ट्रपति को भी नहीं दिया जाता गार्ड ऑफ ऑनर ओरछा के राजा राम हैं यानी ओरछा में सरकार उनकी है। जब भगवान राम यहां राजा हैं तो आमजन उनकी प्रजा है। इसलिए ओरछा में किसी भी वीवीआईपी को गार्ड ऑफ ऑनर नहीं दिया है। चाहे वह प्रधानमंत्री या फिर राष्ट्रपति ही क्यों न हों। लेकिन पुलिस जवानों के द्वारा भगवान राम को हर सशस्त्र सलामी दी जाती है। यह परंपरा करीब 450 वर्षों से चली आ रही है।
अयोध्या से ओरक्षा कैसे पहुंचे राजा राम? वैसे तो लोग भगवान राम को अयोध्या नरेश के रूप में ही जानते हैं। लेकिन ओरछा और अयोध्या का नाता करीब छह सौ साल पुराना है। कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में ओरछा के शासक मधुकर शाह की महारानी कुंवर गणेश भगवान राम को आयोध्या लाईं थीं। इसके पीछे की कहानी भी बेहद रोचक है।
दरअसल, मधकुर शाह भगवान कृष्ण के भक्त थे और महारानी कुंवर गणेश भगवान राम की। अयोध्या पर लिखित एक किताब में इस बात का जिक्र है कि एक दिन महाराज ने रानी से हंसी-हंसी में कह दिया कि अगर तुम्हारे राम कृष्ण से ज्यादा महान हैं तो फिर उन्हें ओरछा क्यों नहीं लाती हो?
रानी के लिए यह भक्ति में शक्ति का सवाल हो गया था। उसके बाद उन्होंने ठान लिया कि भगवान राम को वह ओरछा लाकर ही रहेंगी। उसके बाद महारानी ओरछा से अयोध्या गईं और वहां भगवान राम की तपस्या में लीन हो गईं। कठोर तपस्या के बाद भी भगवान राम के दर्शन नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी। भक्ति की परकाष्ठा देख भगवान राम सरयू में महारानी को दर्शन दिए। महारानी ने अयोध्या नरेश के समक्ष अपनी इच्छा प्रकट की।
रानी के समक्ष राम ने रख दी 3 शर्त
महारानी की इच्छा पर भगवान राम ने भी उनके सामने तीन शर्त रखी। उन्होंने महारानी कुंवर गणेश से कहा कि हम जब भी ओरछा चलेंगे तो पुख नक्षत्र में पैदल ही चलेंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि वहां पहुंचने के बाद ओरछा में एक बार जहां आप हमें बैठा देंगी फिर हम दूसरी जगह के लिए नहीं उठेंगे। तीसरी शर्त यह थी कि जहां हम आपके साथ चलेंगे, वहां के राजा हम ही होंगे। महारानी ने सारी शर्तें स्वीकार कर ली।
रनवास से बस गए राजा राम! भगवान राम जब महारानी के साथ ओरछा चलने के लिए तैयार हो गए तो कुंवर गणेश ने राजा को संदेश भिजवाया। उसके बाद ओरछा में राजा मधुकर शाह ने एक भव्य चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया।
भगवान राम जब वहां पहुंचे तो मंदिर का निर्माण पूरा हो गया था। लेकिन राजा ने सोचा कि वहां भगवान का प्रवेश शुभ मुहूर्त में पूजा-पाठ के बाद ही करवाया जाएगा। तब तक के लिए भगवान राम को रानी के रनवास में ही बैठाया गया।
लेकिन रानी वह शर्त भूल गई थीं, उसके बाद जब भगवान राम को रनवास से उठाकर मंदिर में रखने की तैयारी शुरू हुई तो वह नहीं उठे। लेकिन राजा ने काफी प्रयास किया। अंत में रनवास को ही मंदिर का रूप दे दिया गया। तब से भगवान राम यहीं विराजमान हैं।
मधुकर शाह ने सौंप दी सत्ता इसके बाद ओरछा के महाराज ने भगवान राम को सत्ता सौंप दी। उनका राज्याभिषेक किया गया, उसके बाद से ही ओरछा में भगवान की सत्ता कायम है। जो आज भी बरकरार है।