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rath yatra 2019 : ये मंदिर कब और कितनी होगी बारिश, पहले ही देने लगता संकेत

locationभोपालPublished: Jun 19, 2019 05:33:18 pm

Submitted by:

Shyam

बिना बारिश के मंदिर की छत से टपकने लगता है पानी, हर साल होता है चमत्कार

jagannath temple behta kanpur

rath yatra 2019 : ये मंदिर कब और कितनी होगी बारिश, पहले ही देने लगता संकेत

आज के इस वैज्ञानिक युग में शायद ही कोई कल्पना करेगा की, किसी भगवान का मंदिर बारिश होने की भविष्यवाणी (सूचना) पहले ही दे सकता है। लेकिन हां हमारे देश में एक मंदिर ऐसा भी है जो बारिश की सूचना पहले ही दे देता हैं। जानें आखिर ऐसी भविष्यवाणी करने वाला दिव्य मंदिर है कहां।

 

चमत्कारी मंदिर

क्या आप सोच सकते है चिलचिलाती धूप में बिना बारिश के किसी भवन की छत से पानी टपकने लगे, और बारिश की शुरुआत होते ही जिसकी छत से पानी टपकना बंद हो जाए। ये घटना है तो हैरान कर देने वाली लेकिन सच भी है। उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कहे जाने वाले कानपुर जनपद के भीतरगांव विकासखंड से ठीक तीन किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है बेहटा। यहां भगवान जगन्नाथ का बहुत ही प्राचीन मंदिर है जो बरसात होने से पहले ही बारिश के संकेत देने लगता है।

 

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मंदिर में मनमोहक मूर्तियां विराजमान है

भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर बहुत ही प्राचीन बताया जाता है, इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ और देवी सुभद्रा की काले चिकने पत्थरों से बनी मनमोहक मूर्तियां विराजमान है। मंदिर के प्रांगन में सूर्यदेव और पद्मनाभम की मूर्तियां भी स्थापित है। जगन्नाथ पूरी की तरह यहां भी स्थानीय लोगों द्वारा भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकाली जाती है। रथयात्रा में स्थानीय लोगों के अलावा आसपास के गांव के लोग ही शामिल होते हैं।

 

बिना बारिश के मंदिर की छत से टपकने लगता है पानी

ग्रामीण बताते हैं कि भीषण गर्मी में बारिश होने के 6-7 दिन पहले ही बिना बरसात के इस मंदिर की छत से अचानक पानी की बूंदे टपकने लगती है, इतना ही नहीं जिस आकार की बूंदे छत से टपकती है, उसी आधार पर उतनी ही बारिश भी होती है। अब तो लोग मंदिर की छत टपकने के संदेश को समझकर अपने खेतों में जमीनों को जोतने के लिए निकल पड़ते हैं। हैरानी में डालने वाली बात यह भी है कि जैसे ही बारिश शुरु होती है, छत अंदर से पूरी तरह सूख जाती है।

 

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वैज्ञानिक भी हैरान है

मंदिर की प्राचीनता व छत टपकने के रहस्य के बारे में, मंदिर के पुजारी बताते हैं कि पुरातत्व विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक कई दफा यहां आएं, लेकिन इसके रहस्य को आज तक कोई भी नहीं जान पाए। अभी तक बस इतना पता चल पाया है कि मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य 11वीं सदी में किया गया।

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