scriptकाशी विश्वनाथ के दर्शन से सांसारिक भयों का नाश | Kashi Vishwanath temple | Patrika News

काशी विश्वनाथ के दर्शन से सांसारिक भयों का नाश

Published: Oct 21, 2017 04:28:31 pm

पृथ्वी पर जितने भी भगवान शिव के स्थान हैं, वे सभी वाराणसी में भी उन्हीं के सान्निध्य में मौजूद हैं

kashi vishwanath temple

kashi vishwanath temple

तीनों लोकों में न्यारी वाराणसी में हजारों साल पूर्व स्थापित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। हिंदू धर्म में सर्वाधिक महत्व के इस मंदिर के बारे में कई मान्यताएं हैं। माना जाता है कि भगवान शिव ने इस ‘ज्योतिर्लिंग’ को स्वयं के निवास से प्रकाशपूर्ण किया है।
पृथ्वी पर जितने भी भगवान शिव के स्थान हैं, वे सभी वाराणसी में भी उन्हीं के सान्निध्य में मौजूद हैं। भगवान शिव मन्दरपर्वत से काशी आए तभी से उत्तम देवस्थान नदियों, वनों, पर्वतों, तीर्थो तथा द्वीपों आदि सहित काशी पहुंच गए। विभिन्न ग्रन्थों में मनुष्य के सर्वविध अभ्युदय के लिए काशी विश्वनाथ जी के दर्शन आदि का महत्व विस्तारपूर्वक बताया गया है। इनके दर्शनमात्र से ही सांसारिक भयों का नाश हो जाता है और अनेक जन्मों के पाप आदि दूर हो जाते हैं।
काशी विश्वेश्वर ***** ज्योतिर्लिंग है, जिसके दर्शन से मनुष्य परमज्योति को पा लेता है। सभी लिंगों के पूजन से सारे जन्म में जितना पुण्य मिलता है, उतना केवल एक ही बार श्रद्धापूर्वक किए गए ‘विश्वनाथ’ के दर्शन-पूजन से मिल जाता है। माना जाता है कि सैंकड़ों जन्मों के पुण्य के ही फल से विश्वनाथ जी के दर्शन का अवसर मिलता है।
गंगा नदी के तट पर विद्यमान श्री काशी विश्वाथ मंदिर में वैसे तो साल भर तक यहां श्रद्धालुओं द्वारा पूजा-अर्चना के लिए आने का सिलसिला चलता रहता है, लेकिन सावन आते ही इस मोक्षदायनी मंदिर में देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का जैसे सैलाब उमड़ पड़ता है। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, यह सिलसिला प्राचीन काल से चला आ रहा है। इस मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए आने वालों में आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास जैसे सैकड़ों महापुरुष शामिल हैं।
वर्ष 1676 ई. में रीवां नरेश महाराजा भावसिंह तथा बीकानेर के राजकुमार सुजानसिंह काशी यात्रा पर आये थे। उन्होंने विश्वेश्वर के निकट ही शिवलिंगों को स्थापित किया। हिंदू वास्तुकला का यह अनमोल धरोहर इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई के द्वारा वर्ष 1780 ई. में बनवाया गया था। मन्दिर का निर्माण वर्ष 1780 में भाद्रपदमास कृष्णापक्ष की अष्टमी को पूर्ण हुआ था।
वर्तमान मन्दिर का स्वरूप और परिसर आज मूल रूप से वैसा ही है जैसा कि महारानी अहिल्याबाई द्वारा वर्ष 1780 ई. में बनवाया गया होगा। पंजाब के महाराजा रणजीतसिंह ने वर्ष 1853 में 1000 किलोग्राम शुद्घ सोने से मन्दिर के शिखरों को स्वर्ण मण्डित किया गया, जिसका स्वरुप आज भी विद्यमान है।
मोक्षलक्ष्मीविलास मन्दिर के ही समान इस मन्दिर में पाँच मण्डप बनाने का प्रयत्न किया गया लेकिन विश्वनाथजी के कोने में होने के कारण पूर्व दिशा में मण्डप नहीं बन पाया। यही वजह है कि पूर्वदिशा में मन्दिर का विस्तार किया गया है। इस विस्तृत प्रांगण में दोनों ओर शालामण्डप निर्मित है। हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मन्दिर परिसर का विस्तार किया जा रहा है। मन्दिर के शिखर पर जहाँ तक स्वर्णमण्डन हुआ है, उसके नीचे के भाग को भी स्वर्णमण्डित किए जाने का प्रयत्न वर्तमान मन्दिर प्रशासन द्वारा किया जा रहा है। श्रुतिस्मृति इतिहास तथा पुराणादि के अनुसार, काशी सकल ब्रह्माण्ड के देवताओं की निवासस्थली है, जो शिव को अत्यन्त प्रिय है।
काशी में शिव के अनेकानेक रूप विग्रह, ***** आदि की पूजा-अर्चना की जाती है। शिवपुराण के अनुसार, काशी में देवाधिदेव विश्वनाथ जी का पूजन अर्चन, सर्व पाप नाशक, अनन्त् अभ्युदयकारक, संसाररूपीदावाग्नि से दग्ध जीवरूपी वृक्ष के लिए अमृत तथा भवसागर में पड़े प्राणियों के लिए मोक्षदायक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि वाराणसी में मनुष्य के देहावसान पर स्वयं महादेव उसे मुक्तिदायक तारक मंत्र का उपदेश करते हैं।
पौराणिक मान्यता है कि काशी में लगभग 511 शिवालय प्रतिष्ठित थे। इनमें से 12 स्वयंभू शिवलिंग, 46 देवताओं द्वारा, 47 ऋषियों द्वारा, सात ग्रहों द्वारा, 40 गणों द्वारा तथा 294 अन्य श्रेष्ठ शिवभक्तों द्वारा स्थापित किये गए हैं। काशी या वाराणसी भगवान शिव की राजधानी मानी जाती है। इसलिए अत्यन्त महिमामयी भी है। अविमुक्तक्षेत्र, गौरीमुख, त्रिकण्टकविराजित, महाश्मशान तथा आनन्दवन प्रभृति नामों से मण्डित होकर गूढ आध्यात्मिक रहस्यों वाली है।
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