इस जगह को आदि चिदम्बरम के नाम से जाना जाता है। यहां पर बुध देव का एक प्राचीन मंदिर भी हैं। यह मंदिर कावेरी और मणिकर्णिका नदी के किनारे पर बना है। यहां पर नवग्रह भी स्थापित हैं। इस स्थान पर मुख्य देवता के रुप में चार भुजाधारी बुध देव की मूर्ति की विशेष रूप से पूजा होती है। थिरुवेनकाडु का एक नाम श्वेत अरण्य भी है, जिसका अर्थ होता है सफेद जंगल। साथ ही बुध देव का स्थान होने के चलते यह ज्ञान अरण्य क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि बुध देव को बुद्धि का देवता माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, यहां पर देवराज इन्द्र के वाहन ऐरावत हाथी ने भी तप किया था। यहां पर भगवान शिव का श्वेत रानेश्वर मंदिर भी बना है। माना जाता है कि भगवान शिव ने तांडव नृत्य करने से पूर्व उसका अभ्यास इसी स्थान पर किया था। यहां पर मुख्य मंदिर में बुध देव और श्वेत रानेश्वर के अलावा ब्रह्मा और सरस्वती, दुर्गा, काली, अघोर मूर्ति और नटराज आदि देवी-देवताओं की भी पूजा होती है।
मान्यताओं के अनुसार, यहां आने वाले श्रद्धालु बुध मंदिर की 17 बार परिक्रमा करते हैं और हर परिक्रमा में एक दीप प्रज्वलित करते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से बुध ग्रह के सभी अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाते हैं, साथ ही बुध देव भक्त को बुद्धि और समृद्धि प्रदान करते हैं।