दुनिया का एक मात्र मंदिर है ये
इस मंदिर में अष्टाकार गर्भगृह के कोने में देवी मां मुंडेस्वरी की दिव्य मूर्ति स्थापित है, और बीच में अष्टधातु से बना एक अनूठा चतुर्मुखी शिवलिंग भी स्थापित है। कहा जाता है कि मुंडेश्वरी माता ऐसा रूप पूरी दुनिया में और कहीं नहीं है। पहाड़ी पर स्थित इस मन्दिर तक जाने के रास्ते में दोनों तरफ़ गणेशजी, शिवजी की पत्थरों पर बनी अनेक कलाकृतियां देखने को मिलती है।
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चावल का लगता है भोग
मां मुंडेश्वरी धाम में माता को केवल चावल (तांडुल) का भोग ही लगता था और प्रसाद स्वरूप यही तांडुल भक्तों को वितरित किया जाता था। इस प्रसाद को खाने से अनेक बीमारिया स्वतः ही ठीक हो जाती है। लोग दूर-दूर से आते हैं यहां माता का आशीर्वाद पाने के लिए।
विलक्षण पशु बलि
मां मुंडेश्वरी देवी मंदिर की सबसे बड़ी और विलक्षण विशेषता यह है कि यहां पशु बलि की सात्विक परंपरा है। यहां बकर की बलि दी जाती है, लेकिन उसकी हत्या नहीं जाती। कथानुसार, चंड-मुंड के नाश के लिए मां दुर्गा ने मां मुंडेश्वरी का अद्भूत रूप धारण कर इसी पहाड़ी में छिपे चंड-मुंड का यहीं पर वध किया था, तभी से यहां माता की मां मुंडेश्वरी रूप में पूजा आराधना होने लगी।
बकरे की बलि मनोकामना हो जाती है पूरी
यहां श्रद्धालु भक्त अपना कामनाएं पूरी होने के बाद बकरे की सात्विक बलि देते हैं। लेकिन माता रक्त की बलि नहीं लेतीं, जब बलि देने के लिए बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाया जाता है तो पुजारी ‘अक्षत’ (चावल के दाने) को मां मुंडेश्वरी की मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर फेंकते हैं और बकरा उसी क्षण अचेत, मृतप्राय सा हो जाता है। थोड़ी देर के बाद अक्षत फेंकने की प्रक्रिया फिर होती है तो बकरा उठ खड़ा होता है और इसके बाद ही उसे मुक्त कर दिया जाता है। यहां पर मन्नतों की घंटी बाधी जाती है और माता रानी के दर्शन मात्र से मिट जाते हैं जन्म जन्मान्तर के दुःख व पाप।
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ऐसे पहुंचे मां मुंडेश्वरी के मंदिर
बिहार का भभुआ बनारस से 60 किलोमीटर और गया से 150 किलोमीटर की दुरी पर है। यहां जीटी रोड से आसानी से पहुंचा जा सकता है। अगर कोई रेल मार्ग से जाना चाहें तो बनारस, मुगलसराय, सासाराम, गया से मोहनियां स्टेशन (भभुआ रोड) (मुगलसराय-गया लाइन पर) आ सकते हैं, वहां से मन्दिर तक के लिए वाहनों की व्यवस्था 24 घंटे उपलब्ध रहती है।
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