वैदिक शोध एवं सांस्क़ृतिक प्रतिष्ठान कर्मकाण्ड प्रशिक्षण के आचार्य डा आत्मराम गौतम ने बताया कि तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकाण्ड’ की चौपाइयां प्रयाग में माघ मेले की प्राचीनता और उसकी महत्ता को प्रमाणित करती हैं। “माघ मकर गति रवि जब होई। तीरथ पतिंहि आव सब कोई। देव दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी। पूजहि माधव पद जल जाता। परसि अखय वटु हरषहि गाता। भरद्वाज आश्रम अति पावन।” सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो माघ मास में तीर्थराज प्रयाग में संगम तट पर देव भी स्नान करने आते हैं।
उन्होंने बताया कि रामचरित मानस में गौतम ऋषि द्वारा देवराज इन्द्र और पत्नी अहिल्या के श्राप का वर्णन मिलता है। प्राचीनकाल में गौतम ऋषि की स्त्री की सुंदरता को देखकर देवराज इंद्र ने काम के वशीभूत होकर कपट वेश में उनसे छल करने का प्रयास किया। इसीलिए ऋषि द्वारा उन्हें श्राप दिया गया और उनका शरीर अत्यंत लज्जायुक्त हजारों भगों वाला हो गया। तब इंद्र नीचा मुंह करके अपने पाप को धिक्कारता हुआ काम देव की बुराई करने लगा कि यह सब पापों का मूल है। इसके ही वशीभूत होकर मनुष्य नरक में जाते हैं और अपने धर्म, कीत्र्ति, यश और धैर्य का नाश करते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के आधार पर कहा जाता है की प्रयाग में माघ में आने वालों का स्वागत स्वयं भगवान करते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महादेव आदित्य, रुद्रगण तथा अन्य सभी देवी-देवता माघ मास में संगम स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि प्रयाग में माघ मास के अंदर तीन बार स्नान करने से जो फल मिलता है, वह पृथ्वी पर दस हजार अश्वमेध यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता। आचार्य गौतम ने बताया कि पुराणों में प्रयाग को तीर्थो का राजा कहा गया है। अयोध्या, मथुरा, पुरी, काशी, कांची, अवंतिका (उज्जैन) और द्वारकापुरी, मोक्ष देने वाली रानियां हैं। काशी तीर्थराज को सबसे ज्यादा प्रिय है, इसिलए पटरानी का गौरव काशी को प्राप्त है। पटरानियों को मोक्ष देने का अधिकार तीर्थराज प्रयाग ने ही दिया है। पुराणकाल में उनके लिए कहा है “मुक्तिदाने नियुक्ता।” वे मुक्ति देने के लिए नियुक्त की गई हैं।
अनेक पुराणों में ऐसे प्रसंग आए हैं कि तीर्थराज की पहचान होने के बाद काशी विश्वनाथ स्वयं आकर प्रयाग में रहने लगे। पद्मपुराण के अनुसार भगवान वेणी माधव को शिव अत्यंत प्रिय हैं। वही शिव अवंतिका में महाकालेश्वर के रूप में विराजमान हैं, वहीं शिव काँची की पुण्य गरिमा के कारण हैं। उनका प्रयाग में निरन्तर निवास करना शैव और वैष्णव धर्म के समन्वय का प्रमाण है। उन्होंने बताया कि धर्म ग्रन्थों में तो प्रयाग का मान बढ़ाते हुए कहा गया है कि “माघ मासे गमिष्यन्ति गंगा यमुनासंगमें,बह्मविष्णु महादेव रुद्रादित्य मरुदगणा:।” अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महेश, रुद्र , आदित्य तथा मरुद गण माघ मास में प्रयाग राज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं। प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानरूप यद्धवेत। दशाश्वेघसहस्त्रेण तत्फलम् लभते भुवि।” प्रयाग में माघ मास के अन्दर तीन बार स्नान करने से जो फल मिलता है, वह पृथ्वी में दस हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता है।