इतिहासकारों की मानें तो 7वीं शताब्दी में यह शहर पल्लव राजाओं की राजधानी थी। यह शहर द्रविड वास्तुकला की दृष्टि से अग्रणी स्थान रखता है। महाबलीपुरम दक्षिण भारत के स्वर्णिम इतिहास का जीताजागता प्रमाण भी। इसे पल्लव राजवंश के राजाओं ने 7वीं सदी में बनवाया था।
1300 सालों से यह अपनी जगह से हिला तक नहीं पल्लव राजाओं द्वारा स्थापित महाबलीपुरम और यहां के मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला और वास्तुशिल्प के बेजोड़ नमूने हैं। करीब 1300 साल बीत जाने के बावजूद ग्रेनाइट पत्थरों से बने इन मंदिरों को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचा है। यही नहीं, पल्लव राजाओं ने भगवान श्रीकृष्ण की मक्खन के गोले के प्रतीक के रूप में ‘बटर बॉल’ को निर्मित किया था। एक पत्थर की चट्टान पर विशालकाय गोल पत्थर टिका हुआ है। यह गोल पत्थर 1300 सालों से यह अपनी जगह से हिला तक नहीं।
शोर मंदिर महाबलिपुरम के शोर मन्दिर को दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में एक माना जाता है। यह मंदिर द्रविड वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। यहां तीन मंदिर हैं। बीच में भगवान विष्णु का मंदिर है जिसके दोनों तरफ से शिव मंदिर हैं। यह मंदिर विश्व विरासत में शामिल हो चुका है। 2001 में जब सुनामी आई थी और तटीय क्षेत्र में सबकुछ तबाह कर गई थी, तब भी इस मंदिर को कुछ नहीं हुआ।
पांडव रथ महाबलिपुरम में पांडवों के नाम पर रथों का निर्माण कराया गया है, जिसे पांडव रथ कहा जाता है। पांच में से चार रथों को एकल चट्टान पर उकेरा गया है। जिनमें से चार पांडवों के नाम पर हैं लेकिन पांचवें रथ को द्रौपदी रथ के नाम से जाना जाता है।
गुफाएं वराह गुफा विष्णु के वराह और वामन अवतार के लिए प्रसिद्ध है। साथ की पल्लव के चार मननशील द्वारपालों के पैनल लिए भी वराह गुफा चर्चित है। यहां की महिषासुर मर्दिनी गुफा भी नक्काशियों के लिए खासी लोकप्रिय है।
जानवरों की मूर्तियां इतिहासकारों की मानें तो शोर मंदिर का निर्माण पल्लव वंश के राजाओं ने किया था। लेकिन बाद में चोल वंश के राजाओं ने मंदिरों में कई प्रकार की गाय, सांड, दुर्गा और सिंह जैसे कई अन्य मूर्तियां बनाई गई, जो बहुत ही अद्भुत हैं और देखते ही बनता है।