तीर्थ यात्रा

यहां है पृथ्वी का नागलोक, अमरनाथ से भी कठीन है नागद्वारी यात्रा

nagdwari yatra : नागद्वारी यात्रा दुनिया की सबसे कठिन यात्रा है। हिंदुस्तान में हर साल होने वाले अमरनाथ यात्रा से भी यह कठिन यात्रा है। यहां दुर्गम पहाड़ियों के बीच से होते हुए जहरीले और विषैले सांपों का सामना करते हुए नाग मंदिर तक पहुंचना होता है।

भोपालAug 05, 2019 / 12:11 pm

Devendra Kashyap

यहां है पृथ्वी का नागलोक, अमरनाथ से भी कठीन है नागद्वारी यात्रा

मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के पंचमढ़ी ( panchmadhi ) में बारिश के दौरान हर साल नागद्वारी यात्रा ( nagdwari yatra ) शुरू होती है। यह यात्रा करीब दस दिनों तक चलती है। 16 किलोमीटर दुर्गम पहाड़ी रास्तों को पार कर लोग नागलोक पहुंचते हैं। इस दौरान सात दुर्गम पहाड़ियों को पार करते हैं। पैदल जाने के सिवा श्रद्धालुओं के पास वहां तक पहुंचने के लिए और कोई रास्ता नहीं है। मान्यताओं के अनुसार नागलोक के मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करने से मन्नत पूरी होती हैं।
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कहा जाता है कि नागद्वारी यात्रा दुनिया की सबसे कठिन यात्रा है। हिंदुस्तान में हर साल होने वाले अमरनाथ यात्रा से भी यह कठिन यात्रा है। यहां दुर्गम पहाड़ियों के बीच से होते हुए जहरीले और विषैले सांपों का सामना करते हुए नाग मंदिर तक पहुंचना होता है। यह मंदिर साल में दस दिन के लिए ही खुलता है। पंचमढ़ी की घनी पहाड़ियों के बीच स्थित मंदिरों को नागलोक कहा जाता है। इसे नागद्वार के नाम से भी जानते हैं, इसीलिए इस यात्रा को नागद्वारी यात्रा कहते हैं।
रहस्यमयी है नागलोक

कमजोर दिल वाले तो इस रास्ते को देखकर ही सीहर जाएंगे। इसलिए जब यह यात्रा शुरू होती होती है तो सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम होते है। सीधी पहाड़ियों पर चढ़ने के लिए कई जगहों पर सीढ़ी लगवाए गए हैं। ये रास्ता भी काफी संकीर्ण हैं। घने जंगलों के बीच से होते हुए यह रहस्मयी रास्ता सीधे नागलोक जाता है। नागलोक के दरवाजे तक पहुंचने के लिए खतरनाक 7 पहाड़ों की चढ़ाई और बारिश में भीगे घने जंगलों की खाक छानना पड़ता है, तब जाकर आप नागद्वारी पहुंच सकते हैं।
दो दिन में पूरी होती है यात्रा

16 किमी की पैदल पहाड़ी यात्रा पूरी कर लौटने में भक्तों को दो दिन लगते हैं। नागद्वारी मंदिर की गुफा करीब 35 फीट लंबी है। मान्यता है कि जो लोग नागद्वार जाते हैं, उनकी मांगी गई मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। इसलिए विभिन्न प्रदेशों से करीब लाखों लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं। पट खुलने से पहले ही नागद्वारी यात्रा के लिए 70 हजार श्रद्धालु वहां पहुंच गए हैं। नागपंचमी के दिन लोगों की काफी भीड़ यहां होती है।
साल में एक बार होती है यात्रा

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र होने के कारण यहां आम स्थानों की तरह प्रवेश वर्जित होता है और साल में सिर्फ एक बार ही नागद्वारी की यात्रा और दर्शन का मौका मिलता है। यहीं हर साल नागपंचमी पर एक मेला लगता है। जिसमें भाग लेने के लिए लोग जान जोखिम में डालकर कई किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचते हैं। सावन के महीने में नागपंचमी के 10 दिन पहले से ही कई राज्यों के श्रद्धालु, खासतौर से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के भक्तों का आना प्रारंभ हो जाता है।
चिंतामणि की गुफा

नागद्वारी के अंदर चिंतामणि की गुफा है। यह गुफा 100 फीट लंबी है। इस गुफा में नागदेव की कई मूर्तियां हैं। स्वर्ग द्वार चिंतामणि गुफा से लगभग आधा किमी की दूरी पर एक गुफा में स्थित है। स्वर्ग द्वार में भी नागदेव की ही मूर्तियां हैं। जल गली से 12 किमी की पैदल पहाड़ी यात्रा में भक्तों को दो दिन लगते हैं।
कालसर्प दोष होता है दूर

पहाड़ियों पर सर्पाकार पगडंडियों से नागद्वारी की कठिन यात्रा पूरी करने से कालसर्प दोष दूर होता है। नागद्वारी में गोविंदगिरी पहाड़ी पर मुख्य गुफा में शिवलिंग में काजल लगाने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नागद्वारी मंदिर की धार्मिक यात्रा के सैंकड़ों साल से ज्यादा हो गए हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु कई पीढिय़ों से मंदिर में नाग देवता के दर्शन करने के लिए आ रहे हैं। पचमढ़ी में 1959 में चौरागढ़ महादेव ट्रस्ट बना था। 1999 में महादेव मेला समिति का गठन हुआ था जो अब मेले का संचालन करती है।
बना रहता है डर

नागद्वारी यात्रा के रास्ते इतने दुर्गम हैं कि हर पल डर बना रहता है कि कभी कदम डगमगाए तो सीधे गहरी खाई में समा सकते हैं। गिरते पानी में फिसलन भरी ढलान में यह खतरा और बढ़ जाता है। कभी बड़ी-बड़ी चट्टानों से गुजरना होता है। कई बार तो बहते पानी को भी पार करना किसी रोमांच से कम नहीं होता है।

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