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सावन में इस मंदिर का दर्शन हैं बेहद खास, शिव गणों से जुड़ा है इसका रिश्ता

locationभोपालPublished: Aug 02, 2020 01:26:20 am

यहीं से शुरु हुई थी कांवड़ की परंपरा…

place were the tradition of Kavad yatra started from

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भगवान शिव को सनातन धर्म में संहार के देवता के रूप में माना जाता है। वहीं ये अत्यंत भोले भी है, जिस कारण ये आसानी से प्रसन्न भी हो जाते हैं। ऐसे में देश में इनके हजारों लाखों की तादाद में मंदिर तो हैं ही, 12 ज्योतिर्लिंग भी हैं।

इन दिनों सावन का महीना चल रहा है, ये माह भगवान शिव का प्रिय माह माना जाता है। ऐसे में आज हम आपको भगवान शिव के एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे है, जहां का दर्शन सावन में करना बेहद खास माना जाता है।

दरअसल हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के पास स्थित गढ़मुक्तेश्वर कि जिसे गढ़वाल राजाओं ने बसाया था। कहते हैं कि गंगा नदी के किनारे बसा यह शहर गढ़वाल राजाओं की राजधानी था। बाद में इस पर पृथ्वीराज चौहान का अधिकार हो गया था। गढ़ मुक्तेश्वर मेरठ से 42 किलोमीटर दूर स्थित है और गंगा नदी के दाहिने किनारे पर बसा है।

गढ़ मुक्तेश्वर तहसील सांस्कृतिक दृष्टि से ये अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यहां सावन के महीने में शिव भक्तों का तांता लगा रहता है और कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा स्नान में विशाल मेला लगता है।

शिवगणों से जुड़ी है ये कहानी
इस स्थान के बारे में शिवपुराण में एक महत्वपूर्ण कथा बताई गई है। इस कथा के अनुसार इस स्थान पर अभिशप्त शिवगणों की पिशाच योनि से मुक्ति हुई थी, इसलिए इस तीर्थ का नाम ‘गढ़ मुक्तेश्वर’ अर्थात्गणों को मुक्त करने वाले ईश्वर के तौर पर ये प्रसिद्ध हुआ। भागवत पुराण व महाभारत के अनुसार त्रेता युग में यह कुरु राजधानी हस्तिनापुर का भाग था।

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प्राचीन शिव मंदिर
मुक्तेश्वर शिव का प्राचीन शिवलिंग और मन्दिर कारखण्डेश्वर यहीं पर है। काशी, प्रयाग, अयोध्या आदि तीर्थों की तरह ‘गढ़ मुक्तेश्वर’ भी पुराणों में बताए गए पवित्र तीर्थों में से एक है। शिवपुराण के अनुसार इस स्थान का प्राचीन नाम शिव वल्लभ यानि शिव का प्रिय भी है।

जिसके बाद में भगवान मुक्तीश्वर, जो शिव का ही एक रूप है, के दर्शन करने से अभिशप्त शिवगणों की पिशाच योनि से मुक्ति हुई थी, इसलिए यह गढ़ मुक्तेश्वर के नाम से विख्यात हो गया। पुराण में इस बारे में कहा गया है, “गणानां मुक्तिदानेन गणमुक्तीश्वर: स्मृत:”।

कांवड़ यात्रा से जुड़े हैं यहां के तार
सावन में होने वाली कांवड़ यात्रा से भी इस स्थान का गहरा संबंध है। मान्यता है कि भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लेकर पुरामहादेव मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक किया था, तभी से कांवड़ की परंपरा शुरू हुई थी।

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