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प्रहलाद ने करवाया था भगवान नरसिंह के इस मंदिर का निर्माण, साल में एक बार होता है दर्शन!

locationभोपालPublished: Mar 01, 2020 03:28:21 pm

Submitted by:

Devendra Kashyap

भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया था

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जब-जब धर्म के ऊपर अधर्म भारी पड़ा है, तब-तब भगवान विष्णु ने धरती पर भिन्न-भिन्न रूप में अवतार लेकर अधर्म का विनाश किया है। सतयुग में अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया। तब से ही विष्णु के नरसिंह अवतार को धरती पर पूजा जाने लगा।

आज भी कई जगहों पर भगवान नरसिंह के मंदिर स्थापित है। सिंहाचलम इन्हीं मंदिरों में से एक है जो कि विशाखापट्टनम से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिंहाचल पर्वत पर स्थापित है। सिंहाचलम मंदिर को भगवान नरसिंह का घर भी कहा जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इस मंदिर में नरसिंह भगवान मां लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं और यहां उनकी प्रतिमा पर चंदन का लेप लगाया जाता है।

साल में एक बार हटाया जाता है चंदन का लेप

साल में केवल एक बार अक्षय तृतीया के दिन इस चंदन के लेप को हटाया जाता है। केवल उसी दिन लेप हटाने के कारण भक्तों को नरसिंह देव की प्रतिमा के दर्शन हो पाते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण भक्त प्रह्लाद ने करवाया था।

भक्त प्रह्लाद ने करवाया था इस मंदिर का निर्माण

मान्यता के अनुसार, जब हिरण्यकश्यप का वध भगवान नरसिंह ने किया था, उसके बाद ही भक्त प्रह्लाद ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। बताया जाता है कि समय के साथ वह मंदिर धरती की कोख में समा गया, जिसका पुन:र्निमाण पुरूरवा नामक राजा ने करवाया। इस बात का उल्लेख सिंहाचलम देवस्थान के आधिकारिक वेबसाइट पर भी उपलब्ध है। कहा जाता है कि राजा पुरूरवा ने ही धरती में समाहित हुए भगवान नरसिंह की प्रतिमा को बाहर निकालकर उसे फिर से स्थापित कर चंदन के लेप से ढंक दिया।

अक्षय तृतीया पर हटाया जाता है लेप

अक्षय तृतीया के पर्व पर चंदन के इस लेप को प्रतिमा से हटाया जाता है। इस दिन यहां उत्सव भी किया जाता है। सुबह चार बजे से मंदिर में मंगल आरती के साथ दर्शन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस मंदिर में लगभग साल भर भक्तों का आना-जाना लगा रहता है।

क्यों चंदन के लेप से ढंकी रहती है मूर्ति

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हिरण्यकश्यप के वध के वक्त भगवान नरसिंह बहुत क्रोध में थे। हिरण्यकश्यप के वध के बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हो रहा था। जिस कारण उनका पूरा शरीर गुस्से से जलने लगा। तब उन्हें ठंडक पहुंचाने के लिए चंदन का लेप लगाया गया। जिससे उनके गुस्से में कमी आई। तब ही से भगवान नरसिंह की प्रतिमा को चंदन के लेप में ही रखा जाने लगा। केवल एक दिन के लिए अक्षय तृतीया पर यह लेप हटाया जाता है।

इस मंदिर तक ऐसे पहुंचे

भगवान नरसिंह का यह मंदिर विशाखापट्टनम शहर से करीब 16 किमी दूरी पर स्थित है। विशाखापट्टनम तक रेल, बस और हवाई मार्ग की सुविधा है। विशाखापट्टनम से मंदिर तक बस से या निजी वाहन से जाया जा सकता है।

दर्शन का समय

सुबह चार बजे से मंदिर में मंगल आरती के साथ दर्शन शुरू हो जाते हैं। सुबह 11.30 बजे से 12 बजे तक और दोपहर 2.30 बजे से 3 बजे तक, दो बार आधे-आधे घंटे के लिए दर्शन बंद होते हैं। रात को 9 बजे भगवान के शयन का समय होता है।
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