प्राचीनकाल में आतताइयों से आम जनमानस को शास्त्र और शस्त्र समेत सभी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना के लिए कई कदम उठाए जिनमें से देश के चार कोनों पर- गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ की स्थापना की। इसी दौरान उन्हें लगा कि जब समाज में धर्म विरोधी शक्तियां सिर उठा रही हैं, तो सिर्फ आध्यात्मिक शक्ति ही इन चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर सकता।
शंकराचार्य ने युवा साधुओं पर जोर दिया कि वे कसरत करके शरीर को सुदृढ़ बनाएं और कुछ हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल करें। इसके लिए ऐसे मठ स्थापित किए गए, जहां कसरत के साथ ही हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा, ऐसे मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा। उन्होंने बताया कि आम बोलचाल की भाषा में जहां पहलवान कसरत के दांवपेंच सीखते हैं उसे अखाड़ा कहते हैं। कालांतर में कई और अखाड़े अस्तित्व में आए।
शंकराचार्य ने अखाड़ों को सुझाव दिया कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर शक्ति का प्रयोग करें। इस तरह बाहरी आक्रमणों के उस दौर में इन अखाड़ों ने एक सुरक्षा कवच का काम किया। अखाड़ों का इतिहास वीरता से भरा है। महंत ने बताया कि अखाड़ा सदियों से धर्म रक्षक माने जाते हैं। समय-समय पर अखाड़ों ने मुगलों और अंग्रेजों से मोर्चा लेने के लिए शस्त्र उठाया था।
अखाड़ा से जुड़े महंत, नागा और संन्यासियों ने प्राचीन तीर्थस्थलों एवं मंदिरों की रक्षा के लिए प्राणों की आहुतियां दी हैं। इतिहास में ऐसे कई गौरवपूर्ण युद्धों का वर्णन मिलता है जिनमें बड़ी संख्या में नागा योद्धाओं ने हिस्सा लिया। अहमद शाह अब्दाली द्वारा मथुरा-वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण के समय नागा साधुओं ने उसकी सेना का मुकाबला करके गोकुल की रक्षा की।
आजादी के बाद इन अखाड़ों ने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया। इन अखाड़ों के प्रमुख ने जोर दिया कि उनके अनुयायी भारतीय संस्कृति और दर्शन के सनातनी मूल्यों का अध्ययन और अनुपालन करते हुए संयमित जीवन व्यतीत करें। देश में फिलहाल शैव सम्प्रदाय के सात, वैष्णव के तीन और उदासीन पंथ के तीन, कुल 13 मान्यता प्राप्त अखाड़े हैं।
शैव संन्यासी संप्रदाय के सात अखाड़े-पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, पंच अटल अखाड़ा, पंचायती अखाड़ा निरंजनी, तपोनिधि आनंद अखाड़ा, पंचदशनाम जूना अखाड़ा, पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा, पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा तथा बैरागी वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़ों में दिगम्बर अणि अखाड़ा, निर्वानी अणि अखाड़ा, पंच निर्मोही अणि अखाड़ा एवं उदासीन संप्रदाय के तीन अखाड़ों में पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा, पंचायती अखाड़ा नया उदासीन और निर्मल पंचायती अखाड़ा शामिल हैं।
धर्म ध्वजा अखाड़ा की पहचान होती है। कुंभ पर्व पर जहां अखाड़ों का शिविर लगता है, वहीं उनकी धर्मध्वजा भी लहराती रहती है। धर्म ध्वजों में अखाड़ा के आराध्य का चित्र अथवा धार्मिक चिह्न होता है,जबकि अखाड़ा के आराध्य की प्रतिमा शिविर के मुख्य स्थान में स्थापित होती है।
गौरतलब है कि शैवों और वैष्णवों में शुरू से संघर्ष रहा है। शाही स्नान के वक्त अखाड़ों की आपसी तनातनी और साधु-संप्रदायों के टकराव खूनी संघर्ष में बदलते रहे हैं। वर्ष 1310 के महाकुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े और रामानंद वैष्णवों के बीच हुए झगड़े ने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया था। वर्ष 1398 के अर्धकुंभ में तो तैमूर लंग के आक्रमण से कई जानें गई थीं। वर्ष 1760 में शैव सन्यासियों और वैष्णव बैरागियों के बीच संघर्ष हुआ था। 1796 के कुंभ में भी शैव सन्यासी और निर्मल संप्रदाय आपस में भिड़ गए थे।
वर्ष 1954 के कुंभ में मची भगदड़ के बाद सभी अखाड़ों ने मिलकर अखाड़ा परिषद का गठन किया। विभिन्न धार्मिक समागमों और खासकर कुंभ मेलों के अवसर पर साधु संतों के झगड़ों और खूनी टकराव की बढ़ती घटनाओं से बचने के लिए “अखाड़ा परिषद” की स्थापना की गई। इन सभी अखाड़ों का संचालन लोकतांत्रिक तरीके से कुंभ महापर्व के अवसरों पर चुनाव के माध्यम से चुने गए पंच और सचिवगण करते हैं।
अखाड़ा परिषद के मंहत ने बताया कि सनातन धर्म के प्रतीक 13 अखाड़ों का वैभव सिर्फ कुंभ पर्व में ही नजर आता है। अखाड़े के महंत, नागा संन्यासी हर किसी के आकर्षण का केंद्र होते हैं। धूनी रमाए नागाओं की तपस्या और उनका अछ्वुत करतब हर किसी को सम्मोहित करता है। दुनियाभर के लोग उनकी रहस्यमयी जीवनशैली को जानना-समझना चाहते हैं। ऐसे में अखाड़ों से जुड़े लोग भी आम जनता को साधु समाज से जुड़ी सभी जानकारियों को उपलब्ध करवाते हैं।