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अमरनाथ, केदानाथ और कैलाश मानसरोवर से भी दुर्गम है श्रीखंड महादेव की यात्रा

locationभोपालPublished: Jun 23, 2019 02:00:14 pm

Submitted by:

Devendra Kashyap

अमरनाथ ( Amarnath ) केदानाथ ( Kedarnath ) और कैलाश मानसरोवर ( Kailash Mansarovar ) से भी दुर्गम है श्रीखंड महादेव ( shrikhand ) की यात्रा

shrikhand yatra

अमरनाथ, केदानाथ और कैलाश मानसरोवर से भी दुर्गम है श्रीखंड महादेव की यात्रा

माना जाता है कि पूरा हिमालय भगवान शिव शंकर का स्थान है। भगवान भोले के सभी स्थानों पर पहुंचना बहुत ही कठीन होता है, चाहे वह अमरनाथ ( Amarnath ) हो, केदारनाथ ( Kedarnath ) हो या कैलाश मानसरोवर ( Kailash Mansarovar )। इन सभी स्थानों पर पर महादेव के दर्शन करने के लिए भक्तों को दुर्गम राहों पर चलकर पहुंचना पड़ता है। इन्ही सब में एक और स्थान है श्रीखंड महादेव ( Shrikhand mahadev ) स्थान।
अमरनाथ यात्रा के दौरान जहां लोगों कों करीब 14 हजार फीट की चढ़ाई करनी पड़ती है, वहीं श्रीखंड महादेव ( Lord Shiva ) के दर्शन के लिए करीब 18,570 फीट ऊंचाई पर चढ़ना होता है। यह स्थान हिमाचल प्रदेश में स्थित है। शिमला के आनी उममंडल के निरमंड खंड स्थित बर्फीली पहाड़ी की श्रीखंड चोटी पर स्थित है। यहां आने वाले भक्त लगभग 35 किलीमीटर की जोखिम भरी यात्रा करने के बाद यहां पहुंचते हैं। यहां पर शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 72 फीट है।
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श्रीखंड महादेव की यात्रा के मार्ग में सात मंदिर हैं, जिनके दर्शन करते हुए भक्त श्रीखंड महादेव के पास पहुंचते हैं। यात्रा मार्ग में जाओ में माता पार्वती का मंदिर है, इसके बाद परशुराम मंदिर, दक्षिणेश्वर महादेव, हनुमान मंदिर, जोताकाली, बकासुर वध और ढंक द्वार है।

श्रीखंड महादेव की यात्रा जुलाई में शुरू होता है। इस यात्रा को श्रीखंड महादेव ट्रस्ट द्वारा आयोजित किया जाता है। स्थानीय प्रशासन से सहयोग से यह ट्रस्ट स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधित व्यवस्था उपलब्ध करवाता है। सिंहगाड में रजिस्ट्रेशन और मेडिकल चेकअप की सुविधा है। इसके अलावे रास्ते में विभिन्न स्थानों पर रुकने और ठहरने की सुविधा है। कैंपों में डॉक्टर, पुलिस और रेस्क्यू टीमें तैनात रहती है।
मान्यता है कि श्रीखंड में ही भगवान विष्णु ने भस्मासुर को नृत्य के राजी किया था। कहा जाता है कि भस्मासुर में नृत्य करते-करते उसने अपना सिर पर हाथ रख दिया था और भस्म हो गया था। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इसी कारण से आज भी यहां कि मिट्टी और पानी दूर से ही लाल दिखाई देते हैं।
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