scriptइस देवी के दर्शन करने से पहले लड़कों को करना पड़ता है 16 श्रृंगार | Story of Kottankulangara Devi Temple | Patrika News

इस देवी के दर्शन करने से पहले लड़कों को करना पड़ता है 16 श्रृंगार

locationभोपालPublished: Nov 24, 2019 01:10:09 pm

Submitted by:

Devendra Kashyap

केरल में एक ऐसा प्रचीन मंदिर है जहां पूजा के लिए पुरुष श्रद्धालुओं को विशेष तैयारी करनी पड़ती है।

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हमारे देश में मंदिरों को लेकर तरह-तरह की मान्‍यताएं हैं और उनका पूरी श्रद्धा के साथ अनुसरण भी किया जाता है। हमारे देश में ऐसे कई मंदिर हैं, जहां महिलाओं की प्रवेश-पाबंदी को लेकर चर्चाओं में रहती है, लेकिन कुछ ऐसे भी मंदिर हैं जहां पुरुषों के प्रवेश पर भी पाबंदी है।

वहीं, केरल में एक ऐसा प्रचीन मंदिर है जहां पूजा के लिए पुरुष श्रद्धालुओं को विशेष तैयारी करनी पड़ती है। यहां एक बेहद अनोखी परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इसके बाद ही उन्हें मंदिर में प्रवेश करने व पूजा करने की अनुमति दी जाती है।
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हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार, मंदिरों में पूजा-अर्चना करने के अलग-अलग नियम कायदे बनाए गए हैं। केरल के कोल्लम जिले के कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर में पूजा करने से पहले पुरुष श्रद्धालुओं को महिलाओं की तरह सोलह शृंगार करना जरूरी है। तब ही वे मंदिर में प्रवेश पा सकते हैं।

बताया जा रहा है कि मंदिर में इस तरह से देवी की आराधना की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। हर वर्ष मंदिर में चाम्याविलक्कू त्योहार का आयोजन होता है। मंदिर में पुरुषों के लिए वकायदा श्रृंगार के लिए मेकअप रूम भी बनाए गए हैं, जहां त्योहार में शामिल होने के लिए हजारों पुरुष इक्ट्ठा होकर सजते-संवरते हैं। इसके बाद माता की पूजा कर धन-दौलत, नौकरी, स्वास्थ्य, शादी व परिवार की खुशहाली के लिए प्रार्थना करते हैं।
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स्‍वयं ही प्रकट हुई थी मां की प्रतिमा

बताया जाता है कि यह राज्य का इकलौता ऐसा मंदिर है जिसके गर्भगृह के ऊपर छत या कलश नहीं है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में देवी की मूर्ति स्वयं प्रकट हुईं थी। यहां पर हर वर्ष 23-24 मार्च को चाम्याविलक्कू त्योहार मनाया जाता है। इस मौके पर पुरुष, महिला की तरह साड़ी पहनते हैं व सोलह श्रृंगार करने के बाद मां भाग्यवती की पूजा करते हैं।
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ये हैं मान्यताएं

मान्यता है कि वर्षों पहले इस जगह पर कुछ चरवाहों ने महिलाओं की तरह कपड़े पहनकर पत्थर पर फूल चढ़ाए थे। इसके बाद पत्थर से दिव्य शक्ति निकलने लगी। बाद में इसे एक मंदिर का रूप दिया गया। बताया जाता है कि कुछ लोग इस पत्थर पर नारियल फोड़ रहे थे, इसी दौरान पत्थर से खून बहने लगा। खून बहता देख यहां के लोग चमत्कार मान पूजा-पाठ करने लगे। तब से ही यह परंपरा शुरू हो गई।
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