टाइगर रिजर्व के अधिकारियों का मानना है कि सामान्यत: नीलगाय या अन्य तृणभोजी जानवर भोजन की तलाश करते करते खेतों तक पहुंच जाते हैं। उनके शिकार के लिए बाघ भी खेतों में आ जाते हैं और वहीं अपना ठिकाना बना लेते हैं। ऐसे में जब ग्रामीण अपने खेतों में काम के लिए पहुंचते हैं तो बाघ उन पर भी हमला कर देते हैं। लेकिन अगर जंगल के किनारे खुशबूदार पौधों की फसल होगी तो वन्य जीव वहां नहीं जाएंगे। वन्य जीवों के न पहुंचने से बाघ भी वहां नहीं पहुंचेंगे। ऐसे में इंसानों पर बाघों के हमले कम होंगे।
कई देशों में बाघ संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था WWF के अधिकारी नरेश कुमार का कहना है कि जहां-जहां खूशबूदार फसलों की खेती हुई है, वहां अब तक मानव-बाघ संघर्ष की घटनाएं कम हुई हैं। दरअसल तृणभोजी वन्य जीव खुशबूदार फसलों के कारण खेतों से दूर रहते हैं तो बाघ भी उनकी तलाश में खेतों तक नहीं पहुंचते। ऐसे में किसानों की जान भी बच जाएगी। उन्होंने कहा कि हमारे लिए बाघों की जिंदगी जरूरी भी है और किसानों की भी। इसलिए ऐसी फसल की जाए जिससे बाघ खेतों तक न पहुंचें। पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगल से सटे गांव ढक्का, चांट, खिरकिया बरगदिया, धुरिया पलिया में वन विभाग के लोग किसानों को इस मामले में जागरूक कर रहे हैं। उनका मानना है कि किसान लेमनग्रास, पामारोजा, खस, सिट्रोनेला और जिरेनियम जैसी फसल जंगल किनारे की भूमि में उगाएं।