कहां हैं बाकी दिग्गज? राम अचल राजभर, लालजी वर्मा पार्टी के दो बड़े दिग्गज नेताओं पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने सख्त कार्रवाई कर पार्टी से निष्कासित कर दिया है। खबर है कि पंचायत चुनाव में पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की वजह से विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व राष्ट्रीय महासचिव राम अचल राजभर को पार्टी से निकाला गया है।
भाजपा की लहर में बचाई थी सीट लालजी वर्मा अंबेडकरनगर के कटेहरी और राजभर अकबरपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की लहर के बावजूद दोनों ने अपनी सीट बचाई थी। दोनों ही कांशीराम के जमाने से बसपा से जुड़े हुए थे। राजभर 1993 में पहली बार बसपा के टिकट पर विधायक बने। तब से उनकी जीत का सिलसिला जारी है। वर्मा 1986 में पहली बार एमएलसी बनाए गए। इसके बाद उन्होंने 1991, 1996, 2002, 2007 और 2017 का विधानसभा चुनाव भी जीता।
दारा सिंह चौहान एवं नसीमुद्दीन सिद्दीकी उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री और पूर्व सांसद दारा सिंह चौहान कभी बसपा के प्रमुख चेहरों में से हुआ करते थे। मायावती के खास माने जाने वाले दारा सिंह को मायावती ने अनुशासनहीनता के आरोप में निकाल दिया था जिसके बाद चौहान ने बीजेपी की शरण ले ली थी। अब बीजेपी ने उनको कैबिनेट में जगह भी दे दी है और पिछले चार सालों से वह वन मंत्री के पद पर हैं। दारा सिंह चौहान दो बार राज्य सभा के सदस्य रहे और एक बार घोषी लोकसभा के सदस्य भी चुने गए थे।
इसके अलावा बसपा के दिग्गज नेताओं में शामिल रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी बसपा का बड़ा मुस्लिम चेहरा थे। सरकार में मंत्री के पद पर भी रह चुके थे, नसीमुद्दीन पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगा था जिसके बाद मायावती ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने में देर नहीं लगाई। बसपा से अलग होने के बाद नसीमुद्दीन ने कांग्रेस का दामन थाम लिया।
बाबू सिंह कुशवाहा और स्वामी प्रसाद मौर्य वर्ष 2007 में जब मायावती की सरकार बनी थी तब बाबू सिंह कुशवाहा को कैबिनेट मंत्री बनाया था। वह मायावती के बेहद करीबियों में शामिल थे। लेकिन आरोप है कि मायावती शासनकाल के दौरान 2007 से 2012 के बीच लखनऊ और नोएडा में हुए कथित स्मारक घोटाले में बाबू सिंह कुशवाहा शामिल थे। इसकी जांच लोकायुक्त ने भी की थी और 1400 करोड़ रुपये के घोटाले का अनुमान लगाया था। उस समय बाबू सिंह कुशवाहा खनिज एवं भूतत्व मंत्री थे जबकि नसीमुद्दीन सिद्दीकी लोक निर्माण विभाग के मंत्री थे। हालांकि दोनों मंत्रियों के खिलाफ यह जांच चल रही है।
कुशवाहा के अलावा स्वामी प्रसाद मौर्य भी मायावती के सबसे करीबियों में शामिल थे। लेकिन मायावती जब सत्ता से बाहर हुईं तो स्वामी प्रसाद ने भी उनका साथ छोड़ दिया और भाजपा का दामन थाम लिया था। स्वामी प्रसाद ने मायावती पर काफी गंभीर आरोप लगाए थे। बाद में 2017 में भाजपा की सरकार बनी तो स्वामी प्रसाद को कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी दी गई।