नई दिल्ली । केजरीवाल सरकार ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने के मामले में अहम फैसला लिया है। दिल्ली सरकार ने मुख्यमंत्री के संसदीय सचिवों को लाभ का पद (आफिस आफ प्रॉफिट) के दायरे से बाहर कर दिया है। फैसले के बाद सभी संसदीय सचिव लाभ के पद के दायरे से बाहर रहेंगे। इस पर दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल ने शुक्रवार को फैसला लिया । हालांकि उन्हें (कार्यालय और सरकारी वाहन) की सुविधाएं मिलती रहेंगी। गौरतलब है कि केजरीवाल सरकार के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनें महिने भर से ज्यादा का समय हो चुका है। सभी सचिव कार्यालय व वाहन की सुविधा मुहैया कराने के लिए लगातार सरकार पर दबाव बना रहे हैं। इन सुविधा का उपयोग क रने से उनका पद लाभ का पद माना जाएगा। इससे विधायकों के पद पर कोई दूरगामी विपरीत प्रभाव न पड़े, इसलिए उनके पद को मंत्रिमंडल के फैसले द्वारा लाभ के पद के दायरे से बाहर कर दिया गया है। सभी सचिवों को कार्यालय व सरकारी वाहन की सुविधा देने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इनको पहले कार्यालय का आवंटन होगा फिर गाडियों की सुविधा भी दी जाएगी। सभी संसदीय सचिवों को विभिन्न मंत्रियों के साथ जोड़ दिया गया है। अबतक उन्हें कोई सुविधा नहीं मिलने से उन्हें काम काज में कठिनाई हो रही है। राष्ट्रपति के पास भी पहुंचा मामला हाल ही में यह संसदीय सचिव नियुक्ति का मामला राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास भी जा चुका है। आरोप लगाया गया था कि संसदीय सचिव बनाए गए एमएलए लाभ के पद पर हैं, इसलिए इन सभी की सदस्यता समाप्त कर दी जाए। राष्ट्रपति के पास याचिका भेजकर कहा गया था कि संसदीय सचिव सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल कर रहे हैं और उन्हें मंत्री के ऑफिस में भी जगह भी दी गई है। इस तरह वे लाभ के पद पर हैं। संविधान के आर्टिकल 191 और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ऎक्ट 1991 की धारा-15 के अनुसार अगर कोई व्यक्ति लाभ के पद पर है तो उसकी सदस्यता खत्म हो जाती है। बीजेपी, कांग्रेस और आप ने की नियुक्ति गौरतलब है कि संसदीय सचिव की नियुक्ति का मामला हमेशा से विवादों में रहा है। दिल्ली विधानसभा की नियमावली में संसदीय सचिव शब्द का कोई जिक्र नहीं है। इसके बावजूद अब तक बीजेपी, कांग्रेस और आप तीनों ने ही संसदीय सचिवों की नियुç क्त की है। इसके पूर्व की सरकार में एक या दो संसदीय सचिव की नियुक्ति की जाती थी जिसकी संख्या बढ़कर आम आदमी पार्टी की सरकार में 21 हो गई है।