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राजनीति

हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक कांग्रेस में घमासान, नेतृत्व परिवर्तन पर अड़े नेता

सिद्धारमैया अपना नेता विपक्ष का पद बचाने की कोशिश में
राहुल-सोनिया के वफादारों के बीच जंग के रूप मे देख रहे विशेषज्ञ

नई दिल्लीOct 07, 2019 / 06:01 pm

Navyavesh Navrahi

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हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद अब कर्नाटक में भी कांग्रेस को बगावत का सामना करना पड़ रहा है। तीन महीने पहले तक राज्य में जनता दल सेक्युलर (JDS) के साथ गठबंधन सरकार में चला रही कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं के बीच भी खुली जंग सामने आनी शुरू हो गई है। ये नेता नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार- कर्नाटक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बीके हरिप्रसाद और केएच मुनियप्पा के नेतृत्व में रविवार को बेंगलुरु स्थित कांग्रेस दफ्तर के बाहर पार्टी नेताओं ने जमकर हंगामा किया। नेताओं ने राज्य में पार्टी की दुर्दशा की जिम्मेदारी तय करने और नेतृत्व परिवर्तन की मांग की। इस दौरान नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दिनेश गुंडुराव पर निशाना साधा।
बता दें, इस विरोध प्रदर्शन से कुछ ही दिन पहले पार्टी बैठक में इन नेताओं के बीच हाथापाई तक हुई थी। राज्य में हालिया लोकसभा चुनाव में मिली हार और कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार के ढहने के कारण पार्टी में राज्य नेतृत्व के विरुद्ध आवाज उठने लगी है। विरोधी गुट सिद्धारमैया और राव की विदाई से कम पर तैयार नहीं दिख रहा। उन पर ये आरोप लगाया जाता है कि ये नेता पूरे राज्य नहीं, बल्कि एक तबके के ही नेता बनकर रह गए हैं।
सिद्धारमैया विपक्ष के नेता का पद बचाए रखने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। हालिया लोकसभा चुनाव में कोलार सीट से हार का सामना करने वाले सात बार के सांसद तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री केएच मुनियप्पा का मानना है कि सिद्धारमैया फेल हो चुके हैं। उन्हें अब कांग्रेस विधायक दल के पद से हटना चाहिए। वहीं पूर्व एआईसीसी महासचिव तथा सांसद बीके हरिप्रसाद प्रदेश अध्यक्ष राव के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। उनका कहना है कि आलाकमान को राव की जगह दूसरे गुट के किसी नेता को जिम्मेदारी देनी चाहिए।
उधर वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी राज्य की सियासत में जड़ें जमाने की कोशिश में लगे हुए हैं। सूत्रों के अनुसार- खड़गे के भी सिद्धारमैया से समीकरण ठीक नहीं हैं। पूर्व उपमुख्यमंत्री जी परमेश्वर भी आलाकमान से नाराज हैं, जिस कारण पार्टी की बैठकों में हिस्सा नहीं ले रहे हैं।
जबकि इस सब के बावजूद सिद्धारमैया आसानी से अपना पद नहीं छोड़ने वाले। वे नेता विपक्ष का पद बचाने की कोशिश में हैं और अधिकतर विधायक भी उनके साथ हैं।

जानकार इसे राहुल गांधी और सोनिया गांधी के वफादारों के बीच लड़ाई के रूप में देख रहे हैं। राहुल गांधी के अचानक इस्तीफे और फिर अध्यक्ष पद पर सोनिया गांधी की वापसी ने सोनिया के वफादारों को फिर से पैर जमाने का मौका दे दिया है।

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