लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन को 15 सीटों पर मिली जीत
मायावती ने हार का ठीकरा सपा पर फोड़ा
मायावती ने कहा- यूपी में बसपा अकेले लड़ेगी उपचुनाव
अखिलेश यादव बोले- हम भी अकेले लड़ने के लिए हैं तैयार
एनडीए में भी सबकुछ ठीक नहीं
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव खत्म हो चुका है। देश में मोदी सरकार-2 का आगाज भी हो चुका है। लेकिन, 2019 लोकसभा चुनाव विगत चुनावों से काफी अलग रहा। पूरे चुनाव के दौरान कई ऐसे पहलु सामने आएं, जिसकी कल्पना किसी ने शायद ही कभी की होगी। चाहे वह गठबंधन का मामला हो, नेताओं के दल-बदल का खेल हो या फिर हार-जीत का समीकरण। इस चुनाव में कई ऐसे मौके आएं, जिसने देश को चौंका दिया। इनमें सबसे ज्यादा चौंकाने वाला मामला था बुआ-बबुआ की जोड़ी यानी सपा और बसपा के गठबंधन का। ये दोनों पार्टियां जो कभी एक-दूसरे को देखना तक नहीं चाहती थी, सत्ता में आने के लिए न केवल हाथ मिलाया बल्कि बसपा सुप्रीमो मायावती के उस घाव पर भी मरहम लगाया, जिसके लिए सपा के पूर्व मुखिया मुलायम सिंह यादव को जिम्मेदार ठहराया जाता था। लेकिन, चुनाव खत्म होते ही बुआ और बबुआ एक बार फिर ‘अकेले हम-अकेले तुम’ की राह पर चल पड़े हैं।
पढ़ें- जम्मू-कश्मीर पर अमित शाह की बड़ी बैठक, विधानसभा सीटों के परिसीमन पर विचार‘एकला चलो’ की राह पर मायावती करीब 25 साल बाद उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ था। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की पहल पर बसपा सुप्रीमो मायावती सत्ता के लिए हर गम को भुलाते हुए साथ हो गईं। दोनों पार्टियों का लक्ष्य था यूपी का किला फतह करना। साथ ही विधानसभा चुनाव में बीजेपी से मिली करारी शिकस्त का बदला लेना। लेकिन, जब चुनाव परिणाम आया तो दोनों के सपने चकनाचूर हो गए। सपा-बसपा गठबंधन को 75 में से केवल 15 सीटों पर ही जीत मिली। इनमें 10 सीटों पर बसपा तो 5 सीटों पर सपा ने जीत हासिल की। दोनों पार्टियों को न तो सत्ता मिली और न ही जनाधार। बसपा ने हार का समीक्षा किया और शिकस्त के लिए सपा को जिम्मेदार ठहराया। इतना ही नहीं जख्मी शेर की तरह मायावती ने ऐलान किया कि बसपा यूपी में होने वाले उपचुनाव में अकेल लड़ेगी। मायावती का साफ कहना है कि सपा से गठबंधन करने के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। मायवती ने सपा पर एक के बाद एक कई शब्दभेदी बाण चलाए तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी पलटवार किया और साफ कहा कि हम भी इस पर विचार करेंगे। अखिलेश ने कहा कि गठबंधन टूटा है या जो गठबंधन पर कहा गया है, उस पर सोच समझ कर विचार करेंगे। समाजवादी पार्टी भी उपचुनाव के लिए तैयार है और सपा अकेले चुनाव लड़ेगी।
अमेठी और रायबरेली में उम्मीदवार नहीं उतारा गया था। उत्तर प्रदेश की इन सीटों पर उपचुनाव होना है गंगोह (सहारनपुर), टूंडला, गोविंदनगर (कानपुर), लखनऊ कैंट, प्रतापगढ़, मानिकपुर (चित्रकूट), रामपुर, जैदपुर(सुरक्षित) (बाराबंकी), बलहा(सुरक्षित), बहराइच, इगलास (अलीगढ़), जलालपुर (अंबेडकरनगर)।
दोनों पार्टियों के बयानओं से साफ स्पष्ट है कि यह गठबंधन टूटने के कगार पर है और कभी भी इसकी घोषणा हो सकती है। NDA में भी दरार की आशंका एक ओर जहां यूपी में सपा-बसपा के बीच घमासान मचा हुआ है। वहीं, दूसरी ओर NDA में सियासी हलचल तेज है। मोदी सरकार से बाहर जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कहा कि मोदी मंत्रिमंडल में एक सीट मिलने के कारण वह सरकार में शामिल नहीं हुए। वहीं, नीतीश कुमार ने जब बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार किया तो बीजेपी का कोई चेहार नहीं दिखा, जबकि बीजेपी कोटे से एक सीट अब भी खाली है। जेडीयू और बीजेपी के बीच की नारजगी साफ दिखने लगी है। इसका सबसे ज्यादा फायदा RJD उठाने में लगी है। RJD के कई नेता जेडीयू के पक्ष में बयान दे रहे हैं। जेडीयू सांसद मनोज झा ने तो यहां तक कहा है कि जेडीयू और RJD के बीच गठबंधन के संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। राबड़ी देवी ने भी जेडीयू के पक्ष में बयान दिया है। बिहार की राजनीति उस वक्त और गरमा गई जब पूर्व मुख्यमंत्री और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी-नीतीश कुमार के बीच इफ्तार पार्टी के दौरान मुलाकात हुई। दरअसल, 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव होनी है। इसे लेकर अभी से समीकरण बनने लगे हैं। महागठबंधन और RJD इस कोशिश में कि जेडीयू एक बार फिर उनके साथ आ जाए। इसलिए, मोदी सरकार से बाहर जेडीयू की दुख्ती रग पर महागठबंन के नेता मरहम लगाने की कोशिश कर रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह भी है कि RJD और जेडीयू के बीच खिचड़ी पकनी भी शुरू हो गई है। हालांकि, अभी तक बीजेपी और जेडीयू के नेताओं ने इस मामले में खुलकर कोई बयान नहीं दिया है।
केंद्र सरकार में शामिल शिवसेना को हैवी इंडस्ट्री मंत्रालय दिए जाने पर उसने नाराजगी जताई है। बताया जा रहा है कि शिवसेना के वरिष्ठ नेताओं ने इसे लेकर गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की और मंत्रालय आवंटन को लेकर शिकायत दर्ज कराई है। शिवसेना ने यहां तक कहा है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उसे दूसरा मंत्रालय दिया जाए। शिवसेना की इस चेतवानी NDA के अंदर फिर सियासी हलचल तेज हो गई है। क्योंकि, शिवसेना पिछले कुछ समय से लगातार बीजेपी पर निशाना साधती रही है। मामला यहां तक पहुंच गया था कि दोनों शायद ही एक साथ लोकसभा चुनाव लड़े। लेकिन, किसी तरह समहमति बनी और दोनों साथ चुनाव लड़े। लेकिन, मंत्रालय को लेकर फिर दोनों के बीच विवाद शुरू हो गया है। चर्चा यहां तक है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने शिवसेना की बात नहीं मानी तो परिणाम कुछ भी हो सकता है। गौरतलब है कि 2014-19 की मोदी सरकार में भी शिवसेना ने बीजेपी और केंद्र सरकार पर कई बार निशाना साधा था। कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद गोवा में सरकार बनाने को लेकर भी शिवसेना ने बीजेपी को आड़े हाथ लिया था। इससे पहले भी सीबीआई को लेकर बीजेपी को खरी-खोटी सुनाई थी। अब देखना यह है कि इन सबका गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव तक ही सीमित रहता है या फिर एक-दूसरे को मनाने में यह कामयाब होते हैं।