scriptमोदी की जीत के बाद मुस्लिम वोटर्स ने तोड़ी चुप्‍पी, खुला खामोशी का राज | After the victory of Modi Muslim voters broke silence, open secret of Khamoshi | Patrika News

मोदी की जीत के बाद मुस्लिम वोटर्स ने तोड़ी चुप्‍पी, खुला खामोशी का राज

locationनई दिल्लीPublished: May 23, 2019 07:39:54 pm

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Dhirendra

अल्‍पसंख्‍यक मतदाताओं को लेकर दशकों पुरानी धारणाएं टूटी
इस जीत से मोदी सरकार की जिम्‍मेदारी पहले से ज्‍यादा बढ़ी
मोदी को न रोक पाना कांग्रेस और महागठबंधन की सियासी विफलता
मुस्लिम मतदाताओं को लेकर राजनेताओं में सोच बदलने की जरूरत

 

Muslim voters

मोदी की जीत के बाद मुस्लिम वोटर्स ने तोड़ी चुप्‍पी, खुल गया खामोशी का राह

नई दिल्‍ली। 17वीं लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार 2014 से भी बड़ी जीत हासिल करने की ओर अग्रसर है। ऐसी जीत की उम्‍मीद राजनीतिक विश्‍लेषकों और सैफोलॉजिस्‍टों को भी नहीं थी। हालांकि कुछ एग्जिट पोल्‍स के सर्वे में जरूर इस बात की उम्‍मीद जताई गई थी। फिलहाल एनडीए की दोबारा सत्‍ता में वापसी ने एक बड़ी बहस को जन्‍म दे दिया है कि क्‍या 2014 की तरह इस बार भी मुस्लिम मतदाताओं ने धर्म और जाति से परे उठकर मोदी सरकार का समर्थन किया है। इस बात को लेकर मुस्लिम धर्मगुरुओं, प्रोफेसरों और अर्थशास्त्रियों से बातचीत केे बाद ये बातें सामने आई है कि जीत बड़ी है। ऐसी जीत सभी वर्गो, समुदायों, जातियों और धर्मों के मतदाताओं के समर्थन के बल पर ही हासिल करना संभव है।
सोच पर चोट

हालांकि विभिन्‍न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने इस बात को अनौपचारिक रूप से ही स्‍वीकार किया है। इन विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय राजनीति का इतिहास बताता है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने हमेशा जाति और धर्म से ऊपर उठकर ही मतदान किया है। ऐसा करते हुए राष्‍ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, व्‍यावसायिक हितों का भी ख्‍याल रखा है। इस बार भी अल्‍पसंख्‍यक समुदायों के नेताओं ने ऐसा ही किया है। ऐसा कर अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के लोगों ने उन सियासी धारणाओं को तोड़ने का काम किया है जिसके तहत राजनेता यह मानकर चलते हैं कि उनके पास और कोई विकल्‍प नहीं है।
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सत्‍ता में वापसी बहुत बड़ी चुनौती है

दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय (आत्‍मा राम सनाधन धर्म कॉलेज) में इतिहास विभाग की प्रोफेसर सैयद जेहरा का कहना है कि अधिकांश लोग हो सकता है कि मेरी राय से सहमत न हों, लेकिन मेरा मानना है कि अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के लोग हमेशा से सेक्‍युलर परिप्रेक्ष्‍य को ध्‍यान रखकर मतदान करते आए हैं। इस बार भी उन्‍होंने ऐसा ही किया है। इस बार खास बात ये है कि मुस्लिम मतदाताओं ने भारतीय राजनीति में व्‍याप्‍त उन धारणाओं को जोर का झटका धीरे से दिया है जिसके तहत राजनीतिक दल और राजनेता यह मानकर चलते हैं कि चाहे हम सच्‍चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करें या न करें, उनके हित मेें विकास कार्य करें या नहीं, अल्‍पसंख्‍यक समुदायों की शैक्षिक और आर्थिक उन्‍नयन के लिए काम करें या नहीं, वो हमें वोट करते रहेंगे। इस बार ऐसा नहीं हुआ और लोगों ने अलग स्‍टैंड लिया है। ये स्‍टैंड मोदी सरकार के लिए बहुत बड़ी जिम्‍मेदारी है, जिसका उन्‍हें ख्‍याल रखना होगा। ताकि जनमत का सम्‍मान हो सके। साथ ही अल्‍पसंख्‍यकों को लेकर सोच बदलने की जरूरत है। इतना ही नहीं, अब पीएम मोदी ( PM Narendra Modi )को सबका साथ और सबका विकास की नीति पर अमल भी करना होगा। ताकि लोगों को इस बात का अहसास हो कि मोदी जो कहते हैं वो करके भी दिखाते हैं।
मोदी को जनमत हासिल करने से नहीं रोक पाए विपक्षी नेता

जमायते उलेमा ए हिंद के वरिष्‍ठ पदाधिकारी अब्‍दुल हामिद ने लोकसभा चुनाव परिणाम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्‍ता में दोबारा वापसी पर कहा है कि जनता ने उनका चयन किया है। वह संवैधानिक तरीके से चुनकर दोबारा प्रधानमंत्री बनने वाले हैं। वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत चुने गए हैं। इसलिए सभी को उनका सम्‍मान करना चाहिए। उन्‍होंने यह पूछे जाने पर कि क्‍या मुस्लिम मतदाताओं ने ट्रिपल तलाक, मुस्लिम कन्‍या शिक्षा, आवास योजना, उज्‍जवला योजना व अन्‍य कल्‍याणकारी कार्यों से प्रभावित होकर भाजपा या मोदी को जिताने का काम किया है या नहीं? इस पर उन्‍होंने कहा कि सवाल यह नहीं है कि मुस्लिमों ने मोदी जी को वोट दिया है या नहीं। अहम सवाल यह है कि कांग्रेस और महागठबंधन के नेता मोदी को जनमत हासिल करने से रोक नहीं पाए। उन्‍होंने कहा कि पीएम मोदी हिंदुत्‍ववाद, राष्‍ट्रवाद और आतंकवाद के मुद्दे पर चुने गए हैं। उन्‍होंने कहा कि मॉब लिंचिंग व अन्‍य मुद्दों की वजह से मुस्लिमों में नाराजगी थी। इसका मतलब ये नहीं हैं कि मुस्लिमों ने भाजपा को वोट किया ही नहीं होगा।
निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता

इंडियन स्‍कूल ऑफ बिजनेस हैदराबाद के प्रोफेसर अमीरुल्‍लाह खान ( Amir Ullah Khan ) ने मोदी सरकार की जीत पर बताया कि अभी ये कहना मुश्किल है कि मुस्लिमों ने वोट दिया या नहीं दिया, दिया तो कितना दिया। ऐसा इसलिए कि जहां पर भी मुस्लिमों की पकड़ मजबूत है वहां पर सपा-बसपा के प्रत्‍याशी चुनाव जीत रहे हैं। लेकिन भाजपा के कुछ नेता जिनकी पकड़ मुस्लिमों के बीच अच्‍छी है, उन्‍होंने अपने संबंधों के आधार पर पहले की तुलना में एक से दो फीसद वोट ज्‍यादा हासिल कर लिया हो। उन्‍होंने कहा कि चूंकि भाजपा नेतृत्‍व ने इस बार लक्ष्‍मण रेखा खींचते हुए कहा था कि मुस्लिम हमें वोट नहीं देते हैं। इसलिए मुस्लिमों का ज्‍यादा वोट मिलने की संभावना बहुत कम है। इस बात को अभी खारिज भी करना उचित नहीं होगा।
भाजपा के कुछ नेताओं की मुस्लिमों के अच्‍छी पैठ है

हाल ही में 24 अकबर रोड के लेखक और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने कहा था कि भाजपा ( BJP ) के कुछ नेताओं की खुद की बेहतर छवि की वजह से मुस्लिमों में अच्छी पैठ है। गुजरात के बोहरा मुस्लिमों का वोट पारंपरिक रूप से भाजपा को मिलता रहा है। मध्य प्रदेश में भाजपा के पार्षद स्तर के सौ से अधिक मुस्लिम नेता हैं। अगर हम बारीकी से देखें तो पता चलता है कि मुस्लिमों और भाजपा के बीच भरोसे की कमी है, जिसे दूर करने की जरूरत है।
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2014 में भाजपा को मिला था सबसे ज्‍यादा वोट

सीएसडीएस के मुताबिक मुस्लिम मदताताओं ने 1998 में 5 फीसदी, 1999 में 6 फीसदी, 2004 में 7 फीसदी, 2009 में 3 फीसदी और 2014 में 8.5 फीसदी अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के लोगों ने भाजपा को अब तक वोट किया था। 2014 से पहले भाजपा ( BJP ) को सबसे ज्यादा 7 फीसदी मुस्लिमों का सपोर्ट 2004 में मिला था। यूपी में तो 10 फीसदी मुस्लिमों ने 2014 के लोकसभा चुनाव ( lok sabha election ) में भाजपा को वोट किया था।
सत्‍ता में भागीदारी

देश में 17.22 करोड़ मुस्लिम हैं। 16वीं लोकसभा में 24 मुस्लिम सांसद हैं, जो पिछले चार दशक में सबसे कम है। यूपी में करीब 20 फीसदी मुस्लिम आबादी है। वहां से 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम एमपी नहीं चुना गया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 428 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से सात मुस्लिम प्रत्‍याशी थे, लेकिन एक भी चुनाव नहीं जीत पाए। दूसरी ओर कांग्रेस ने 464 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से 27 पर मुस्लिम थे, जिसमें से तीन जीते।
मुस्लिम जनसंख्या के बारे में शायद ये बात आप नहीं जानते होंगे

1. भारत दुनिया का सबसे तीसरा बड़ा मुस्लिम आबादी का देश है।
2. दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी वाला देश भारत है।
3. भारत से ज्यादा मुस्लिम जनसंख्या वाला देश दुनिया में सिर्फ इंडोनेशिया और पाकिस्तान ही है।
4. भारत के तीन राज्यों में मुस्लिम आबादी सब से ज्यादा है। इनमें उत्तर प्रदेश में 3.07 करोड़ (19.3%), पश्चिम बंगाल में 2.02 करोड़ (25%) और बिहार में 1.37 करोड़ (16.9%)।
5. अमरीकी थिंक-टैंक प्‍यू रिसर्च के मुताबिक भारत में साल 2050 तक मुसलमानों की कुल जनसंख्या बढ़कर 31.1 करोड़ तक हो सकता है।
6. भारत के 47 % मुसलमान मुख्यतः उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार राज्य में रहते हैं ।
7. दुनिया के 10% मुसलमान भारत में रहते हैं।
8. सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या प्रतिशत वाला केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप है।
9. सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या प्रतिशत वाला राज्य जम्मू और कश्मीर 8,570,916 यानि 68.3% उसके बाद असम 34.2% है ।
10. भारत में 145 सीटें हैं जहां मुसलमानों का वोट शेयर 20% है।
11. भारत में 38 सीटें जहां मुसलमानों का वोट शेयर 30% है।
12. भारत में 35 लोकसभा सीटों पर 3 वोट में से एक मुस्लिम मतदाताओं की है।
13. कुल मिलाकर भारत में 218 सीटें पर मुसलमानों का बहुत प्रभाव है।
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मुस्लिम आबादी

2011 में हुई जनगणना के मुताबिक भारत मे मुस्लिम जनसंख्या 17.22 करोड़ है जो कि भारत के जनसंख्या का 14.23 फ़ीसद है। भारत में मुस्लिमों का जनसंख्या वृद्धि दर 24.6% है। यानि कि हर दस सालों में 24.6% मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ जाती है। अगर आप अंदाजा लगाएं तो 2011 और 2019 के बीच 8 सालों का समय गुजर चुका है। इन 8 सालों 14 से 16% तक जनसंख्या बढ़ सकता है। यानि कि 17.22 करोड़ में 2 से 3 करोड़ की आबादी को जोड़ सकते हैं। इस लिहाज से भारत में करीब 20 करोड़ आबादी मुसलमानों की है।
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