मीडिया की ओर से यह सवाल पूछे जाने पर कि पांच सितंबर की रैली डीएमके के लिए फूट कारण बनेगा। इस पर उन्होंने कहा कि उनकी रैली द्रमुक के लिए निश्चित रूप से खतरे का सबब साबित होगा। उन्होंने कहा कि अपने पिता के जितिव रहते कभी किसी पद की इच्छा जाहिर नहीं की। उनके निधन के बाद से खुद को पार्टी का अध्यक्ष घोषित कराने को लेकर एमके स्टालिन जल्दबाजी में हैं। इस बात के संकेत सात अगस्त को उस समय मिला था जब चेन्नई के मरीना बीच में पिता के अंतिम संस्कार के समय दोनों गुट समर्थक वहां जमा हुए थे। वहीं पर उत्तराधिकार युद्ध की अफवाहें उठी थीं। अलागिरी का कहना है कि उनके पिता को चाहने वाले उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। तमिलनाडु के समर्थक भी मेरे साथ हैं। लेकिन स्टालिन इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है। वर्तमान स्थिति में समय ही माकूल जवाब दे सकता है।
आपको बता दें कि तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री रहे और कलैगनार के नाम से मशहूर डीएमके प्रमुख मुथुवेल करुणानिधि का सात अगस्त शाम को चेन्नई के कावेरी हॉस्पिटल में निधन हुआ था। द्रविड़ आंदोलन की उपज एम करुणानिधि अपने करीब 6 दशकों के राजनीतिक करिअर में ज्यादातर समय राज्य की सियासत का एक ध्रुव बने रहे। वह 50 साल तक अपनी पार्टी डीएमके के प्रमुख बने रहे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी एम करुणानिधि तमिल भाषा पर अच्छी पकड़ रखते थे। उन्होंने कई किताबें, उपन्यास, नाटकों और तमिल फिल्मों के लिए संवाद लिखे। तमिल सिनेमा से राजनीति में कदम रखने वाले करुणानिधि करीब छह दशकों के अपने राजनीतिक जीवन में एक भी चुनाव नहीं हारे। लेकिन उनके निधन के बाद से डीएमके का नेतृत्व करने को लेकर दोनों बेटों के बीच उत्तराधिकार का संघर्ष जारी है। पिछले कुछ वर्षों से पार्टी मामलों से दखल न देने बाले अलागिरी अब मुखर हो गए हैं। अब वो अपना हक चाहते हैं, जो उन्हें अब तक नहीं मिला।