दिल्ली में मुख्यमंत्री केजरीवाल और केंद्र सरकार के टकराव में खुल कर अपनी रणनीति नहीं बना पा रही कांग्रेस का काफी नुकसान किया है। पार्टी अध्यक्ष ने इस मामले पर सोमवार को पहली बार मुंह खोला भी तो उनका बयान सहयोगियों को शांत नहीं कर पाया। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता खुद कहते हैं, “अगर दिल्ली के मामले में हमारा रवैया सही है तो फिर हम अपने ही सहयोगियों को क्यों नहीं समझा पा रहे और हमारे खुद के (पांडिचेरी के) मुख्यमंत्री भी उनके साथ खड़े दिख रहे हैं।”
ममता ने भुनाया मौका
दरअसल, भाजपा विरोधी महागठबंधन के प्रयासों के बीच क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं। एक तो चुनाव में वे कांग्रेस से अधिक से अधिक सीटें अपने लिए झटक सकें। दूसरा, स्पष्ट बहुमत नहीं होने की स्थिति में केंद्र में उनकी स्वीकार्यता दूसरे दलों में अधिक से अधिक हो। इसलिए वे क्षेत्रीय दलों के आपसी सहयोग पर खूब ध्यान दे रहे हैं। ममता बनर्जी ने इस मौके को भुनाने में काफी कामयाबी हासिल की है। एक तरह से उसने यह संकेत दे दिए हैं कि क्षेत्रीय पार्टियों की हर मांग को कांग्रेस के नफे-नुकसान के ऊपर रखा जाना चाहिए।
आधार कांग्रेस का, समर्थन केजरीवाल का
कर्नाटक में कांग्रेस के दुगने विधायक होने के बावजूद मुख्यमंत्री बने जद (ध) एचडी कुमारस्वामी ने पिछले दिनों ही खुले आम कहा था कि उन्हें जनता ने नहीं कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनवाया है। लेकिन केजरीवाल या दिल्ली की राजनीति से कोई सीधा सरोकार नहीं होने के बावजूद वे इस मामले पर कांग्रेस के विरोध को दरकिनार कर पूरी तरह आप के पक्ष में ताल ठोक कर उतर गए।
यही रवैया कांग्रेस की बेहद विश्वसनीय सहयोगी मानी जाने वाली लालू प्रसाद की राजद से ले कर झारखंड में उसकी सहयोगी झामुमो और कांग्रेस का खूब समर्थन पा रहे शरद यादव का भी रहा। आपसी बातचीत में कांग्रेस के नेता भी मानते हैं कि दिल्ली के इस प्रकरण ने कांग्रेस के उहापोह और अस्पष्टता ने उसका नुकसान किया है।