जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल शासन को मंजूरी मिलने के तत्काल बाद राज्यपाल एनएन वोहरा ने सुरक्षा को लेकर एक आपात बैठक बुलाई है। इस बैठक में सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी, राज्य के डीजीपी और अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों समेत सतर्कता एजेंसियों के अधिकारियों को बुलाया गया है। बैठक में राज्य में कानून और व्यवस्था, आतंकी हमला, पत्थरबाजी की घटनाओं व जन सुरक्षा समेत अन्य पहलुओं पर विचार किया जाएगा। संभावना इस बात की भी है कि राज्यपाल अपने स्तर पर सेना और राज्य पुलिस को आपसी तालमेल के आधार पर कार्रवाई का आदेश दें।
मीडिया रिपोर्ट्स मुताबिक राज्यपाल शासन लगने के बाद सबसे पहली प्राथमिकता पत्थरबाजों और आतंकियों घटनाओं पर नकेल कसरे की है। इस काम को सेना के नियंत्रण में पुलिस के सहयोग से अंजाम दिया जा सकता है। राज्यपाल शासन के दौरान जम्मू और कश्मीर से आतंकवाद का जड से खात्मा संभव हो सके। जानकारी के मुताबिक कश्मीर में अमरनाथ यात्रा से पहले आतंकियों के खिलाफ कुछ बड़े ऑपरेशंस को अंजाम दिया जा सकता है। इसके लिए सेना की राष्ट्रीय राइफल्स और जम्मू-कश्मीर पुलिस दक्षिण कश्मीर के कुछ जिलों में बड़े स्तर पर अभियान चलाने की तैयारी भी कर रही है। माना जा रहा है कि सेना के जवान औरंगजेब और पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या की वारदातों के बाद सेना दक्षिण कश्मीर में कुछ बड़े ऑपरेशंस को अंजाम दे सकती है। इसके अलावा आने वाले दिनों में पैरा स्पेशल फोर्सेज के साथ ऑपरेशन किल टॉप कमांडर और ऑपरेशन ऑल आउट जैसे कुछ नए ऑपरेशंस भी शुरू किए जा सकते हैं।
सेना के इन ऑपरेशंस के अलावा दक्षिण कश्मीर में पत्थरबाजों पर बड़ी कार्रवाई भी की जा सकती है। अगर अतीत पर गौर करें तो यह देखने को मिलता है कि 2016 की हिंसा के दौरान कश्मीर में भाजपा-पीडीपी सरकार के दौरान 9 हजार से अधिक पत्थरबाजों पर केस दर्ज हुए थे। इन सभी पत्थरबाजों में एक बड़ी संख्या उन युवकों की थी, जिन्हें दक्षिण कश्मीर के जिलों से गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के कुछ महीनों बाद महबूबा सरकार ने सैकड़ों पत्थरबाजों पर से मुकदमे वापस ले लिए थे। सरकार का कहना था कि युवाओं को मुख्यधारा में लाने के लिए यह कदम उठाए गए हैं, जबकि विपक्षी पार्टियों का आरोप था कि महबूबा ने श्रीनगर और अनंतनाग सीटों पर होने वाले उपचुनाव के मद्देनजर लोगों के समर्थन के लिए ऐसा किया था। इस फैसले के बाद भाजपा सरकार को कई मोर्चों पर विरोध और आलोचना का सामना करना पड़ा था। इसलिए राज्यपाल शासन के दौरान सेना और पुलिस आपरेशंस को सियासी दखलंदाजी से दूर रखने की योजना है।
जानकारी के मुताबकि महबूबा सरकार से समर्थन वापसी की रणनीति 12 रोज पहले ही बनने लगी थी। अपने दौरे के बीच ही राजनाथ सिंह ने घाटी में सुरक्षा हालातों की समीक्षा की थी। इस दौरान राजनाथ सिंह ने अमरनाथ यात्रा को लेकर सुरक्षा एजेंसियों से रिपोर्ट भी ली थी। साथ ही भाजपा के मंत्रियों ने भी महबूबा सरकार को लेकर उन्हें अपना फीडबैक दिया था। राज्य की राजनीति को करीब से देखने वाले लोगों का मानना है कि पीएम मोदी ने राजनाथ सिंह को यहां के हालात की ग्राउंड रिपोर्ट जांचने के लिए भेजा था, जिसके क्रम में राजनाथ ने तीनों संभागों जम्मू, श्रीनगर और लद्दाख क्षेत्रों के पार्टी नेताओं से मुलाकात की थी। राजनाथ के इस दौरे के बाद दिल्ली में पीएम मोदी को इसकी रिपोर्ट सौंपी गई थी, जिसके बाद पार्टी ने अपनी राज्य ईकाई से समन्वय कर सरकार से समर्थन वापसी की कवायद शुरू कर दी।