हाल ही में भीमा कोरेगांव कमिशन ने हाल ही में मुंबई में सुनवाई का पहला चरण पूरा किया है। टीम की रिपोर्ट में बताया गया है कि एकबोटे ने धर्मवीर संभाजी महाराज स्मृति की स्थापना वधु बुद्रक और गोविंद गायकवाड़ से जुड़े इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने के लिए की थी। माहर जाति के गायकवाड़ ने शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी महाराज का अंतिम संस्कार किया था। संभाजी महाराज की समाधि के पास गोविंद गायकवाड़ के बारे में बताने वाले फोटो को हटाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केबी हेडगेवार का फोटो लगाया गया था, जिसकी कोई जरूरत नहीं थी। यह अगड़ी और निचली जातियों के बीच खाई बनाने के लिए उठाया गया कदम था। अगर पुलिस ने कोई कदम उठाया होता तो किसी अनहोनी को रोका जा सकता था। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि भीमा-कोरेगांव के पास सनासवाड़ी के लोगों को हिंसा के बारे में पहले से पता था। इलाके की दुकानें और होटेल बंद रखे गए थे।
रिपोर्ट में इस बात का भी दावा किया गया है कि गांव में केरोसिन से भरे टैंकर लाए गए थे। लाठी-तलवारें पहले से रखी गई थीं। जानकारी होने के बाद भी पुलिस मूकदर्शक बनी रही। यहां तक कि हिंसा के दौरान दंगाई कहते रहे चिंता मत करो, पुलिस हमारे साथ है। रिपोर्ट में एक डीएसपी, एक पुलिस इंस्पेक्टर और एक अन्य पुलिस अधिकारी का नाम लिया है। सादी वर्दी में मौजूद पुलिस भगवा झंडों के साथ भीमा-कोरेगांव जाती भीड़ को रोकने की जगह उनके साथ चल रही थी। धेंडे ने दावा किया है कि इस बात का सबूत दे दिया गया है कि दंगे सुनियोजित थे और उनका एल्गार परिषद से कोई लेना-देना नहीं है।
आपको बता दें कि हिंसा से पहले भीमा कोरेगांव और आसपास के इलाकों में दलितों और मराठाओं के बीच दुश्मनी नहीं थी लेकिन भिड़े और एकबोटे ने इतिहास की पटकथा को बदलकर सांप्रदायिक तनाव पैदा किया। समय के हिसाब से हिंदुत्ववादी ताकतों के संबंध को दिखाया है।