नीतीश कुमार ने बुधवार शाम इस्तीफा देकर और बीजेपी से गठबंधन कर साबित कर दिया कि वे अब राजनीतिक जोड़-तोड़ के बड़े खिलाड़ी बन गए हैं।
पटना। नीतीश कुमार ने बुधवार शाम इस्तीफा देकर और बीजेपी से गठबंधन कर साबित कर दिया कि वे अब राजनीतिक जोड़-तोड़ के बड़े खिलाड़ी बन गए हैं। ये कोई पहला मौका नहीं है जब
नीतीश कुमार ने बीजेपी का सहारा लिया है, इससे पहले जब-जब नीतीश की कुर्सी खतरे में पड़ी, तब-तब उन्होंने बीजेपी का दामन थामा। वैसे नीतीश के बयानों पर नजर डाली जाए तो ऐसा लगता है कि उन्हें मौजूदा समय में पीएम मोदी की नीतियों से कोई खास दिक्कत नहीं है।
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90 के दशक में ही बीजेपी से किया गठबंधन
90 के दशक में नीतीश ने लालू यादव का साथ छोड़ जॉर्ज फर्नांडीस की साथ समता पार्टी का गठन किया था। नीतीश को उम्मीद थी कि 1995 के चुनाव में समता पार्टी अच्छी सीटें जीतेंगी लेकिन चुनाव परिणाम आए तो उनकी पार्टी को महज 7 सीटें ही मिलीं। उसके बाद 1996 में नीतीश और जॉर्ज फर्नांडीस ने बीजेपी के साथ गठबंधन का मन बनाया। एनडीए के साथ लड़ने पर नीतीश को फायदा हुआ। 1996 लोकसभा चुनाव में उन्हें 8 और 1998 में उन्हें 12 सीटें मिली। इसके साथ बीजेपी ने उन्हें 2000 में बिहार के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी तक पहुंचा दिया। उस वक्त उनकी सरकार का कार्यकाल 6 दिन ही रहा लेकिन बिहार में
नीतीश कुमार एनडीए के बड़े नेताओं में से एक गिने जाने लगे। कुछ सालों बाद नीतीश का बीजेपी से मोहभंग हो गया है और उन्होंने जॉर्ज फर्नांडीस के साथ 2003 में जेडीयू का गठन कर लिया। इसमें उन्हें कई पुराने साथियों को भी शामिल किया। नीतीश ने अपने साथियों के साथ मिलकर जमीनी स्तर पर काफी मेहनत की और 2005 में बिहार की सत्ता पर कब्जा जमाया।
जब जॉर्ज फर्नांडिस को अध्यक्ष पद से हटाया
2007 में नीतीश ने एक बड़ा फैसला लेते हुए जॉर्ज फर्नांडिस को ही पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया और शरद यादव को पार्टी की कमान सौंप दी। 2014 लोकसभा चुनाव में नीतीश ने बीजेपी से दूरी बना ली। इसकी वजह उन्होंने धर्मनिरपेक्षता को बताया, लेकिन इस बार नीतीश का दांव उल्टा पड़ गया। मोदी लहर के सामने जेडीयू को सिर्फ 2 सीटें मिलीं।
जीतनराम राम को पहले सीएम बनाया फिर हटाया
हार की जिम्मदारी लेते हुए उन्होंने सीएम की कुर्सी छोड़ दी और जीतनराम मांझी को सीएम बनाया। जीतनराम ने सीएम बनते ही बागी तेवर दिखाने शुरू कर दिए। जिस वजह से नीतीश को उन्हें सत्ता से बेदखल कर खुद सीएम की कुर्सी संभालनी पड़ी। नीतीश को डर था कि लोकसभा चुनाव की तरह कहीं बिहार विधानसभा चुनाव में भी उन्हें करारी हार का सामना न करने पड़े, इसके लिए नीतीश ने महागठबंधन में शामिल होने का फैसला लिया। नीतीश ने महागठबंधन में भी अपना दांव खेला और आरजेडी को ज्यादा सीटें मिलने के बावजूद खुद मुख्यमंत्री बन गए।
लालू की चाल को किया नाकाम
सूत्रों के मुताबिक हाल में लालू पर जब जांच एजेंसियों ने शिकंजा कसना शुरू किया तो लालू ने बीजेपी के साथ डील करने वाले थे। लालू यादव का प्लान बीजेपी के साथ मिलकर नीतीश को सत्ता से बेदखल करना था। नीतीश को जैसे ही लालू की चाल का पता चला वैसे ही उन्होंने लालू का साथ छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया। अब देखने वाली बात यह है कि नीतीश और बीजेपी का यह साथ कब तक चलता है। नीतीश के राजनीतिक करियर को देखते हुए कहा जा सकता है कि नीतीश भारतीय राजनीति के ऐसे चाणक्य हैं जो कभी भी कोई दांव खेलने से घबराते नहीं हैं।