इससे पहले एनडीए का साथ छोड़कर महागठबंधन में शामिल हुए हम के प्रमुख जीतन राम मांझी 20 सीटों पर दावा ठोक चुके हैं। हालांकि उनके इस दावे को हवा-हवाई माना जा रहा है लेकिन उन्होंने सीट बंटवारे से पहले अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की भरसक कोशिश की है। दूसरी तरफ कांग्रेस बिहार में लोकसभा की 12 सीटों से कम पर राजी होने के लिए तैयार नहीं है। बसपा की तर्ज कांग्रेस ने बिहार में आरजेडी के सामने सम्मानजनक सीटों की बात छेड़ दी है। यानी कांग्रेस को समुचित नहीं मिला तो पार्टी अकेले दम पर भी चुनाव लड़ सकती है। ऐसे में महागठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। आरजेडी की मुश्किलें उस समय और बढ़ जाएंगी जब एनडीए की सहयोगी पार्टी आरएलएसपी वहां से महागठबंधन में आ जाए।
बिहार में कांग्रेस पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुकी है। दशकों से वहां पर खिसकते जनाधार के बीच सवर्ण वोटरों को लुभाने के लिए पार्टी ने मदन मोहन झा को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। पदभार संभालते ही उन्होंने साफ कर दिया कि कांग्रेस अब याचक की भूमिका में नहीं रहेगी, क्योंकि आने वाला समय कांग्रेस का ही है। टिकट बंटवारे में भी कांग्रेस सवर्णों का पूरा खयाल रखने वाली है ताकी बिहार के ब्राह्मणों के बीच ये संदेश दिया जा सके कि कांग्रेस पार्टी सवर्णों की नेतृत्व में हिस्सेदारी देने को तैयार है।
साल 2014 लोकसभा चुनाव में आरजेडी 25, कांग्रेस 12, एनसीपी एक और बाकी पर वाम पार्टियों ने चुनाव लड़ा था। 2019 लोकसभा चुनाव में जीतन राम मांझी की पार्टी हम भी महागठबंधन से ही चुनावी मैदान में उतरने जा रही है और मांझी को तीन-चार सीटें मिलने का अनुमान है। एनसीपी और लेफ्ट पार्टियां भी कतार में हैं। ऐसे में कांग्रेस सूत्रों के 12 सीटों से कम पर समझौता न करने वाली बात आरजेडी को अपनी सीटें बांटने के लिए मजबूर करेगा। इस राह में बड़ा सवाल ये है कि क्या तेजस्वी यादव इसके लिए तैयार होंगे।