भाजपा गठबंधन में रहती जूनियर की भूमिका
भाजपा नेताओं को इस समय सबसे ज्यादा चिढ़ शिवसेना के नेता संजय राउत के बयानों से लग रही है। सोमवार को राउत ने भाजपा पर एक बयान और दे मारा। उन्होंने कहा- भाजपा अगर पीडीपी जैसी अलगाववादियों के साथ नजदीकी रखने वालों के साथ गठबंधन बना सकती है तो हम एनसीपी और कांग्रेस के साथ क्यों नहीं जा सकते। दरअसल, शिवसेना के नेता पिछले 5 साल से इस घड़ी का इंतजार कर रहे थे। महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के मौजूदा नतीजों से उसने महाराष्ट्र में खुद का वजूद बचाने का बड़ा मौका हाथ में लग गया था। शिव सेना सुप्रीमो उद्धव समेत पार्टी के शीर्ष नेताओं का मानना था कि अगर शिवसेना ने भाजपा का ऑफर मान लिया और डिप्टी सीएम पर तैयार हो गई तो वह हमेशा डिप्टी बन कर रह जाएगी और एक दिन यह हैसियत भी खत्म हो सकती है। लिहाजा उसने सबसे पहले भाजपा के सामने ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री बनाने की जिद पर अड़ गई।
चुनाव में भाजपा ने पहुंचाया नुकसान
शिवसेना के नेताओं का कहना था कि भाजपा से रिश्ता तोडऩे की उसे बहुत खुशी है। क्योंकि 2014 से लेकर 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सहयोगी दल होने के बावजूद उसे नुकसान पहुंचाने की पूरी कोशिश की। नेताओं का आरोप है कि इस चुनाव में तो मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस ने उनके खिलाफ सरकारी मशीनरी का जमकर इस्तेेमाल किया और कम से कम 10 से 15 सीटों पर चोट पहुंचाई। शिवसेना नेताओं का यह भी तर्क है कि भाजपा के साथ समीकरण और समानता (इक्यूएशन एंड इक्यूलिटी) के आधार पर गठबंधन बना था लेकिन कभी इक्यूलिटी नहीं रही। नेताओं का कहना है कि भाजपा और शिवसेना दोनों एक ही विचारधारा की पार्टी थी लेकिन ये मेल ही नुकसान पहुंचाने लगा और भाजपा ने वैचारिक स्तर पर भी शिवसेना को पीछे करना शुरू कर दिया था।
दीवाली के बाद से ही संपर्क टूटा
महाराष्ट्र के नतीजे 24 अक्टूबर को आए। उसके बाद दोनों पक्षों की बातचीत हुई लेकिन बातचीत ऐसी फंसी कि दीवाली के बाद से संपर्क लगभग टूट गया था। शिवसेना ने अपनी तरफ से बिल्कुल संपर्क खत्म कर दिया था। कोई बैकचैनल भी बात नहीं हो रही थी। फणनवीस ने भी प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि शिवसेना के नेता एक तरफ एनसीपी नेताओं से रोजाना मिल रहे हैं, जबकि भाजपा नेताओं का फोन तक नहीं उठा रहे।