अभी तक यूपीए के पक्ष में रहा है समीकरण
लोकसभा चुनाव के नजरिए से बात करें इन राज्यों में कांग्रेस और उसके सहायक दल साल 2004 से लगातार दो लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें हासिल करते रहे हैं। इस बार आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और पुडुचेरी की कुल 82 सीटों पर यूपीए और एनडीए अपनी-अपनी तैयारी मजबूती से कर रहे हैं। साल 2004 और साल 2009 में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को 82 में से 70 सीटों से ज्यादा पर जीत हासिल हुई थी। हालांकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में यह 2 सीटों तक सिमट गया। लेकिन इस बार समीकरण पिछले के चुनावों से अलग है, इसलिए चुनाव परिणाम भी चौकाने वाले आ सकते हैं।
लोकसभा चुनाव के नजरिए से बात करें इन राज्यों में कांग्रेस और उसके सहायक दल साल 2004 से लगातार दो लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें हासिल करते रहे हैं। इस बार आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और पुडुचेरी की कुल 82 सीटों पर यूपीए और एनडीए अपनी-अपनी तैयारी मजबूती से कर रहे हैं। साल 2004 और साल 2009 में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को 82 में से 70 सीटों से ज्यादा पर जीत हासिल हुई थी। हालांकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में यह 2 सीटों तक सिमट गया। लेकिन इस बार समीकरण पिछले के चुनावों से अलग है, इसलिए चुनाव परिणाम भी चौकाने वाले आ सकते हैं।
तमिलनाडु की उलझी है गुत्थी
इन सभी राज्यों में से तमिलनाडु पर भाजपा और कांग्रेस दोनों की नजर है। ऐसा इसलिए कि यहां की राजनीति ने क्षेत्रीय शीर्ष नेतृत्व खाली है। ऐसा अम्मा और कलैगनार के निधन से हुआ है। दोनों के निधन के बाद राज्य की राजनीति किस ओर जाएगी इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस के एक शीर्ष नेता ने दावा किया था कि अगला लोकसभा चुनाव डीएमके, यूपीए के साथ मिल कर लड़ेगी। इसी के अगले हफ्ते डीएमके ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को इस महीने के अंत में करुणानिधि मेमोरियल सर्विस के लिए आमंत्रित किया। जानकारी के मुताबिक शाह वहां जाएंगे। अब यह लग रहा है कि भाजपा इस कार्यक्रम में एक वरिष्ठ पार्टी नेता को भेज देगी। गुलाम नबी आजाद कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करेंगे। तमिलनाडु के अपने पिछले दौरे के वक्त अमित शाह ने कहा था कि राज्य में भाजपा का चुनाव से पूर्व गठबंधन होगा। लेकिन किससे यह अभी स्पष्ट नहीं है। साल 2004 और साल 2009 के लिए तमिलनाडु में सहयोगी के चुनाव ने भाजपा को दो लोकसभा चुनावों के लिए दिल्ली की सत्ता से बाहर रखा।
इन सभी राज्यों में से तमिलनाडु पर भाजपा और कांग्रेस दोनों की नजर है। ऐसा इसलिए कि यहां की राजनीति ने क्षेत्रीय शीर्ष नेतृत्व खाली है। ऐसा अम्मा और कलैगनार के निधन से हुआ है। दोनों के निधन के बाद राज्य की राजनीति किस ओर जाएगी इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस के एक शीर्ष नेता ने दावा किया था कि अगला लोकसभा चुनाव डीएमके, यूपीए के साथ मिल कर लड़ेगी। इसी के अगले हफ्ते डीएमके ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को इस महीने के अंत में करुणानिधि मेमोरियल सर्विस के लिए आमंत्रित किया। जानकारी के मुताबिक शाह वहां जाएंगे। अब यह लग रहा है कि भाजपा इस कार्यक्रम में एक वरिष्ठ पार्टी नेता को भेज देगी। गुलाम नबी आजाद कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करेंगे। तमिलनाडु के अपने पिछले दौरे के वक्त अमित शाह ने कहा था कि राज्य में भाजपा का चुनाव से पूर्व गठबंधन होगा। लेकिन किससे यह अभी स्पष्ट नहीं है। साल 2004 और साल 2009 के लिए तमिलनाडु में सहयोगी के चुनाव ने भाजपा को दो लोकसभा चुनावों के लिए दिल्ली की सत्ता से बाहर रखा।
आंध्र प्रदेश
जहां तक आंध्र प्रदेश की बात है तो यहां पर 25 लोकसभा सीटों के साथ, कांग्रेस की तरह भाजपा एक छोटी खिलाड़ी की भूमिका में है। राज्य में चुनाव के दौरान टीडीपी और वाईएसआरसीपी के बीच सीधी टक्कर होगी। दलित और अल्पसंख्यक वोटों को मजबूत करने का प्रयास करते हुए जगन मोहन रेड्डी की भाजपा के साथ आने की उम्मीद बहुत कम है। इसलिए टीडीपी का जीतना भाजपा के लिए बेहतर साबित हो सकता है।
जहां तक आंध्र प्रदेश की बात है तो यहां पर 25 लोकसभा सीटों के साथ, कांग्रेस की तरह भाजपा एक छोटी खिलाड़ी की भूमिका में है। राज्य में चुनाव के दौरान टीडीपी और वाईएसआरसीपी के बीच सीधी टक्कर होगी। दलित और अल्पसंख्यक वोटों को मजबूत करने का प्रयास करते हुए जगन मोहन रेड्डी की भाजपा के साथ आने की उम्मीद बहुत कम है। इसलिए टीडीपी का जीतना भाजपा के लिए बेहतर साबित हो सकता है।
तेलांगना
तेलंगाना में कांग्रेस सत्तारूढ़ टीआरएस का मुख्य विरोधी दल है। के चंद्रशेखर राव के नुकसान से कांग्रेस का लाभ होगा। अगर यहां टीआरएस का प्रभुत्व कायम रहा तो यह भाजपा के लिए मुफीद साबित होगा। होगा। राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन के चुनाव में टीआरएस ने भाजपा का समर्थन किया था। इसलिए भाजपा केसीआर के लिए कोई चुनौती नहीं है।
तेलंगाना में कांग्रेस सत्तारूढ़ टीआरएस का मुख्य विरोधी दल है। के चंद्रशेखर राव के नुकसान से कांग्रेस का लाभ होगा। अगर यहां टीआरएस का प्रभुत्व कायम रहा तो यह भाजपा के लिए मुफीद साबित होगा। होगा। राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन के चुनाव में टीआरएस ने भाजपा का समर्थन किया था। इसलिए भाजपा केसीआर के लिए कोई चुनौती नहीं है।