scriptशारदा घोटाला : पूर्व मंत्री मदन मित्रा की जमानत रद्द | Calcutta HC cancels Mitra's bail plea, asks him to appear in court | Patrika News

शारदा घोटाला : पूर्व मंत्री मदन मित्रा की जमानत रद्द

Published: Nov 19, 2015 10:24:00 pm

मदन मित्रा को अलीपुर अदालत से गत 31 अक्टूबर को जमानत मिली थी, जिसके बाद सीबीआई ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी

Madan Mitra

Madan Mitra

कोलकाता। कलकत्ता हाई कोर्ट ने करोड़ों रुपए के शारदा चिटफंड घोटाले में आरोपी तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मदन मित्रा की जमानत रद्द करते हुए उन्हें तत्काल निचली अदालत के समक्ष पेश होने का आदेश दिया। न्यायाधीश निशिता म्हात्रे तथा न्यायाधीश तापस मुखर्जी की एक खंडपीठ ने उनकी जमानत रद्द करने का अनुरोध करने वाली केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की याचिका गुरुवार को स्वीकार करते हुए मित्रा को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, अलीपुर की अदालत में तत्काल पेश होने के लिए कहा।

कोर्ट ने कहा कि सीबीआई की याचिका को मंजूर कर लिया गया। न्यायालय के आदेश के बाद मित्रा के दो बेटों सहित उनके सारे समर्थक उदास दिखे। कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए मित्रा अलीपुर में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत के समक्ष पेश हुए।

अलीपुर अदालत में हाई कोर्ट का आदेश नहीं पहुंचा था, इसलिए औपचारिकता गुरुवार देर शाम तक पूरी होगी। उधर, विपक्षी दलों ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि कोर्ट हमेशा न्याय करती है।

पश्चिम बंगाल के परिवहन मंत्री मदन मित्रा ने बुधवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। सीबीआई ने दलील दी थी कि करोड़ों रुपए के शारदा चिटफंड घोटाले में आरोपी बनाए जाने व जेल भेजे जाने के बावजूद कैबिनेट में उनकी मौजूदगी इस बात को दर्शाती है कि वह कितने प्रभावशाली हैं।

सीबीआई ने बुधवार को दायर याचिका में कहा था कि एक प्रभावशाली व्यक्ति होने के नाते अगर उन्हें हिरासत में नहीं रखा गया, तो वह जांच में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं और सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं।

न्यायालयों द्वारा कई बार जमानत याचिका खारिज होने के बाद 31 अक्टूबर को मित्रा को जमानत मिली थी। इससे पहले कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भी उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

अपे्रल 2013 में राज्य के अब तक के सबसे बड़े घोटाले (शारदा) के सामने आने के बाद इससे संबंधित मामले में मित्रा के खिलाफ धोखाधड़ी, साजिश व विश्वासघात के आरोप के बाद 12 दिसंबर को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। सीबीआई ने उनकी जमानत को रद्द करवाने के लिए तीन नवंबर को उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसमें दलील दी गई कि निचली
अदालत द्वारा दी गई उनकी जमानत अवैध और मनमानी भरा है।

वहीं, पांच नवंबर को न्यायाधीश जॉयमाल्या बागची व मीर दारा शिको ने मामले का निपटारा एक नियमित खंड पीठ द्वारा होने तक मित्रा को घर में नजरबंद रखने का आदेश दिया था। जमानत को रद्द करने पर जोर देते हुए सीबीआई के वकील के.राघवाचार्युलू ने कहा कि मित्रा को जमानत देते वक्त निचली अदालत ने बदली परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रखा, और ऐसी अवस्था में उन्हें राहत दी, जब उच्च न्यायालय भी उन्हें राहत देने से इंकार कर चुका है।

सीबीआई के तर्क को खारिज करते हुए कपूर ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने इस बात के सबूत पेश नहीं किए हैं कि मित्रा जांच में बाधा डाल रहे हैं या सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि एजेंसी द्वारा दाखिल पांच आरोप पत्रों में से केवल एक में ही उन्हें अभ्यारोपित किया गया है।

उन्होंने कहा, जब वे ढेर सारे आरोप पत्र दाखिल कर चुके हैं, तो फिर उनकी हिरासत की क्या जरूरत है। उन्होंने सीबीआई पर जानबूझकर उन्हें परेशान करने का आरोप लगाया। कपूर ने कहा कि एजेंसी ने सह आरोपी संधीर अग्रवाल की जमानत को रद्द करने की याचिका दाखिल नहीं की, जिन्हें उसी दिन जमानत मिली थी, जिस दिन मित्रा को मिली थी।

सीबीआई के वकील ने कहा कि अग्रवाल की जमानत को रद्द करने की प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है। कोर्ट ने जैसे ही सीबीआई की याचिका को स्वीकार किया, कपूर ने अनुरोध किया कि चिकित्सा के आधार पर मित्रा को घर में नजरबंद रहने की ही अनुमति दी जाए, लेकिन कोर्ट ने इनकार कर दिया।

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