केसीआर ने करीब छह महीने पहले कहा था कि वो किसी गुट में शामिल नहीं होंगे। न तो कांग्रेस के पक्ष में और न ही भाजपा के पक्ष में। उन्होंने कहा था कि क्षेत्रीय पार्टियों को एक नया मोर्चा बनाने की जरूरत है। जिसे वो थर्ड फ्रंट मानते हैं तो कुछ क्षत्रप उसे तीसरा मोर्चा कहकर भी पुकारते हैं। केसीआर अपने संभावित मोर्चे में बीजेडी, टीएमसी, बसपा, सपा व अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को जोड़कर चलना चाहते हैं। इनमें से ओडिश के सीएम नवीन पटनायक खुद को खेमेबंदी से दूर रखना चाहते हैं। टीएमसी के लिए यह मोर्चा मुफीद हो सकता है। मायावती और अखिलेश से केसीआर की बातचीत चल रही है। कांग्रेस के विस्तार को देखते हुए हो सकता है कि यूपी की ये दोनों पार्टियां इस मोर्चे में शामिल हो जाए। अब तो इस बात की भी संभावना बनने लगी है कि कहीं चंद्रबाबू नायडू अपना पासा बदलकर थर्ड फ्रंट का हिस्सा न बन जाएं। ऐसा इसलिए कि उन्होंने हाल ही में बयान दिया है कि कांग्रेस के साथ गठजोड़ मजबूरी में उठाया गया कदम है।
विधानसभा चुनाव में भाजपा शासित तीनों राज्यों में कांग्रेस की सत्ता में वापसी से तत्काल इस मोर्चे से राहुल गांधी को नुकसान होने वाला नहीं है। लेकिन केसीआर की पीएम मोदी से नजदीकियों के कारण माना जा रहा है कि 2019 में गठबंधन सरकार की स्थिति में भजापा इसका लाभ उठा सकती है। माना जा रहा है कि हंग पार्लियामेंट के आसार बनने पर सरकार गठन में थर्ड फ्रंट की भूमिका अहम हो सकती है। हालोकि अपने संभावित मोर्चे के कार्यक्रम, लक्ष्य और विचार को लेकर केसीआर ने अब तक कोई ठोस संकेत नहीं दिए हैं।
फिलहाल केसीआर यह मानकर चल रहे हैं कि इस बार के संसदीय चुनाव में किसी भी दल को बहुमत मिलने की संभावना कम है। ऐसे में फेडरल फ्रंट की भूमिका अहम होगी। उनकी नजर भविष्य में ऐसे ही सूरते-हाल पर टिकी है। अगर ऐसा हुआ तो भारतीय जनता पार्टी के लिए यह मोर्चा लाभकारी साबित हो सकता है। ऐसा इसएिल कि वैचारिक और मिजाज के लिहाज से केसीआर और पीएम नरेंद्र मोदी में काफी समानता है और दोनों के बीच नजदीकियां भी हैं।