मांझी का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में आपको बता दें कि समन्वय समिति गठित करने की वकालत मांझी ने कांग्रेस की ओर से लगातार लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर दिए जा रहे बयान के बाद की थी। कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी लगातार यह मांग कर रहे थे कि राजद और कांग्रेस के बीच समान रूप से सीटों का बंटवारा होना चाहिए। लेकिन, इस पर हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ने आपत्ति जता दी। हम का कहना था कि दलों को उनकी राजनीतिक हस्ती के आधार पर सीटें दी जानी चाहिए। जुबानी जंग चल ही रही थी कि इससे पहले मांझी ने विवाद को खत्म करने के इरादे से सभी दलों के सदस्यों की सहभागिता के साथ समन्वय समिति गठित किए जाने का प्रस्ताव दिया। मांझी ने इसका फार्मूला भी तय किया। सबसे बड़े सहयोगी राजद की ओर से तीन, कांग्रेस से दो और शेष सहयोगी दलों से एक-एक प्रतिनिधि को समन्वय में शामिल करने की बात कही। लेकिन, इस प्रस्ताव पर किसी ने गौर नहीं किया और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
गौरतलब है कि यह कोई पहला मौका नहीं था। इससे पहले भी साल 2016 में कांग्रेस विधायक दल के नेता सदानंद सिंह ने भी समन्वय समिति की वकालत थी। बहरहाल मांझी को उम्मीद थी कि उनका सुझाव सहयोगी दलों को मान्य होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब देखना यह है कि महागठबंधन में सीटों का बंटवार आसानी हो जाता है या फिर एनडीए की तरह यहां भी घमासान मचेगा।