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विधानसभा चुनाव 2018: राजस्थान और मध्यप्रदेश में महिला विधायकों की संख्या में आई कमी, छत्तीसगढ़ में सुधार

locationनई दिल्लीPublished: Dec 14, 2018 01:48:37 pm

कम प्रतिनिधित्व का कारण टिकटों के खराब वितरण के साथ-साथ यह पूर्वधारणा भी रही कि महिलाएं चुनावों में कमजोर उम्मीदवार साबित होंगी

MP & Rajasthan Graphics

विधानसभा चुनाव 2018: राजस्थान और मध्य प्रदेश में महिला विधायकों की संख्या में कमी आई, छत्तीसगढ़ में सुधार

नई दिल्ली। राजस्थान और मध्यप्रदेश की नव निर्वाचित असेंबली में इस बार महिलाएं कम संख्या में चुनी गई हैं। चुनाव के नतीजे 2013 के मुकाबले 2018 में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व का संकेत दे रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि मुख्य पार्टियों ने इस बार कम महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए थे। कम प्रतिनिधित्व का कारण टिकटों के खराब वितरण के साथ-साथ यह पूर्वधारणा भी रही कि महिलाएं चुनावों में कमजोर उम्मीदवार साबित होंगी। बता दें कि संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में 205 देशों के एक सर्वे में भारत का स्थान 149 वां था जबकि राज्यों की विधानसभाओं की सीटों के मुकाबले महिला उम्मीदवारों का प्रतिनिधित्व केवल 8 प्रतिशत था।

गिरी महिला विधायकों की संख्या

2013 के राज्य चुनावों की तुलना में इस बार चुनावों के बाद महिलाओं के प्रतिनिधित्व में कोई सुधार नहीं दिख रहा है। पांच राज्यों के हुए विधानसभा चुनाव में 685 महिलाएं चुनाव लड़ रही थीं, हालांकि मुख्य पार्टियों ने केवल एक तिहाई यानी 219 महिलाओं को मैदान में उतारा था। चुनाव के बाद विजयी घोषित किए गए 678 नव निर्वाचित विधायकों में से केवल 63 महिलाएं हैं। इसका मतलब यह हुआ कि कुल जीते विधायकों में केवल 9% ही महिलाएं हैं। राजस्थान और मध्य प्रदेश के असेंबली चुनाव में राष्ट्रीय औसत के मुकाबले महिलाओं के प्रतिनिधित्व में कमी देखी है। छत्तीसगढ़ में पिछले चुनाव के मुकाबले कुछ प्रगति हुई है। तेलंगाना में महिलाएं प्रतियोगिता से लगभग अनुपस्थित थीं। यहां मुख्य पार्टियों में ने केवल 38 महिलाओं को टिकट वितरित किए थे।

राजस्थान का परिदृश्य

राजस्थान में 179 महिलाओं ने 2018 विधान सभा चुनाव लड़ा। केवल 71 महिलाएं मुख्य पार्टियों के टिकट पर चुनाव लड़ीं। इनमें से 23 महिलाएं विजयी हुई हैं। राज्य में 1990 से 2018 के समय अंतराल में टिकट वितरण में महिला उम्मीदवारों का हिस्सा मामूली रूप से बढ़कर 8% हो गया है । महिला विधायकों की संख्या में प्रगति पूरी तरह से उम्मीदवारों के रूप में उनकी उपस्थिति पर निर्भर नहीं है, बल्कि प्रमुख दलों द्वारा दिए गए टिकटों की संख्या पर भी निर्भर है। 2008 से बीजेपी और कांग्रेस ने महिलाओं को कुछ अधिक संख्या में टिकट वितरित करना शुरू किया। इसके बाद 2008 और 2013 में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में वृद्धि हुई। 2018 में बीजेपी ने 23 महिलाओं को टिकट वितरित किए। 2013 में बीजेपी ने 20 जबकि कांग्रेस ने 25 महिलाओं को टिकट दिया।

मध्यप्रदेश में ऐसी रही स्थिति

मध्यप्रदेश में 2018 के चुनावों ने महिलाओं के प्रतिनिधित्व की प्रवृत्ति को इस बार बदला है। मध्यप्रदेश विधानसभा में पांच साल पहले की तुलना में इस बार 10 कम महिलाएं हैं। पिछली असेंबली में राज्य में 30 महिलाएं चुनी गई थीं। इस बार राज्य में 10 महिलाएं बीजेपी टिकट पर जीती हैं जबकि 9 कांग्रेस के टिकट पर विजयी हुई हैं। एक महिला विधायक बसपा के टिकट पर निर्वाचित हुई है।

छत्तीसगढ़ के आंकड़े महिलाओं की उम्मीदवारी और प्रतिनिधित्व दोनों में क्रमिक वृद्धि दर्शाते हैं। असेंबली के छोटे आकार को देखते हुए यहां की प्रगति बेहतर कही जा सकती है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में महिलाओं का प्रतिनिधित्व वास्तव में काफी स्थिर है। महिला उम्मीदवारों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि के बावजूद मिजोरम में मतदाता अभी भी महिला प्रतिभागियों को अस्वीकार कर रहे हैं। मिजोरम में एक भी महिला विधायक चुनाव में विजयी नहीं रही।

महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व की वजह

भारत में राष्ट्रीय राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर किए गए एक स्वतंत्र अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि प्रतिस्पर्धा और मुकाबले के चलते पार्टियां ‘कमजोर’ महिला उम्मीदवारों को अधिक टिकट वितरित नहीं करना चाहतीं हैं। कठिन चुनाव मुकाबले को देखते हुए बीजेपी ने मध्य प्रदेश में महिला उम्मीदवारों को दिए गए टिकटों की संख्या 2013 में 22 से 2018 में 10 कर दी। कांग्रेस ने ऐसा डर कम दिखाया और पांच साल पहले के 6 के मुकाबले उसने इस बार 9 महिलाओं को टिकट दिया। कुल मिलाकर स्थिति उज्ज्वल नहीं है। जानकारों का मानना है कि भारतीय राजनीतिक दलों की प्रतिस्पर्धात्मकता चुनाव की प्रवृत्ति यदि महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम करती है तो यह 2019 के राष्ट्रीय चुनावों के लिए अच्छा नहीं है। असल में पार्टियां इस झूठी धारणा से संचालित हो रही हैं कि महिलाएं कमजोर उम्मीदवार साबित होती हैं।

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