राजनीति

केवल 5 प्रतिशत के लिए मोदी ने पूरे देश को कतार में खड़ा किया : दीपंकर

भट्टाचार्य ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर नोटबंदी की आड़ में देश की
जनता को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा कि दरअसल मोदी सरकार कालेधन पर
निर्णायक हमला नहीं करना चाहती

Nov 30, 2016 / 07:21 pm

जमील खान

Dipankar Bhattacharya

पटना। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी लेनिनवादी) ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर नोटबंदी की आड़ में देश के पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने और आमलोगों को दुश्वारियों की खाई में धकेलने का आरोप लगाते हुए बुधवार को कहा कि कालाधन जमा करने वाले धनकुबेरों की काली कमाई को सफेद बनाने पर लगने वाले कर में महज पांच फीसदी की बढ़ोतरी
के लिए देश को कतार में खड़ा कर दिया है।

भाकपा-माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, काली कमाई पर लगाम लगाने का दम भरती आ रही केंद्र की मोदी सरकार ने 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा से पहले कालेधन को सफेद बनाने के लिए 45 प्रतिशत कर का प्रावधान किया था। विमुद्रीकरण करके सरकार ने देश-दुनिया को बताया कि वह भारत को कालेधन से मुक्त कराने और इसका फायदा
गरीबों को पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है। फिर अचानक पिछले दिनों आयकर अधिनियम में संशोधन करके कालेधन को सफेद बनाने के लिए वसूले जाने वाले कर की दर को बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया। अब सवाल उठता है कि वसूली में केवल पांच प्रतिशत का इजाफा करने के लिए पूरे देश को कतार में क्यों खड़ा किया गया।

भट्टाचार्य ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर नोटबंदी की आड़ में देश की जनता को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा कि दरअसल मोदी सरकार कालेधन पर निर्णायक हमला नहीं करना चाहती। इसकी बजाय वह विमुद्रीकरण के जरिए कालेधन को सफेद बनाने का प्रयास कर रही है। पूंजीपतियों पर बैंकों का 11 लाख करोड़ रुपए बकाये कर्ज को वसूलने की बजाय
उनके कर्ज माफ करने के लिए माहौल तैयार कर रही है। इसे भाकपा-माले कतई बर्दाश्त नहीं करेगी।

बिना कुछ किए ही सफेद हो गया 2 लाख करोड़ का कालाधन
भाकपा-माले महासचिव ने केंद्र सरकार पर लगाए आरोप को और पुष्ट करने के लिए एक उदाहरण देते हुए बताया कि विदेशों से कालाधन वापस लाने के वादे के साथ सत्तारूढ़ हुई मोदी सरकार ने अपनी विफलता छुपाने के लिए नोटबंदी के जरिए देश के अंदर जमा चार लाख करोड़ रुपए (अनुमानित) के कालेधन पर प्रहार करने का दावा किया। लेकिन, काली कमाई को सफेद बनाने के इस खेल में कर (टैक्स) की दर 50 प्रतिशत कर देने से तो करीब दो लाख करोड़ रुपए का कालाधन तो बिना कुछ किए ही सफेद हो गया।

तो, सरकार नहीं लाती 2000 रुपए का नोट
उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि मोदी सरकार बताए कि गणित के किस फॉर्मूले के तहत यह सौदा सटीक बैठता है। भट्टाचार्य ने कहा कि नोटबंदी से सीधा नुकसान देश की आम जनता को हुआ है क्योंकि नए नोट छापने पर खर्च हुए करीब एक लाख 28 हजार करोड़ रुपए न तो अंबानी के हैं, न अडानी के और न ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के हैं। यह तो देश के गरीब मजदूर और किसानों की गाढ़ी कमाई है। और तो और काली कमाई जमा रखने वालों को बिना कोई नुकसान पहुंचाए उनके दो लाख करोड़ रुपए कालेधन को सफेद बनाने का प्रावधान कर दिया। असल में सरकार का उद्देश्य कालेधन पर लगाम लगाना था ही नहीं, यदि ऐसा होता तो 500 और 1000 रुपए के
नोट बंद करके इनसे भी बड़ा 2000 रुपए का नोट नहीं लाती।

नोटबंदी से पहले का हिसाब क्यों नहीं मांगा
उन्होंने श्री मोदी के उनकी पार्टी के सांसदों और विधायकों द्वारा बैंक से लेनदेन का ब्यौरा देने की अनिवार्यता तय किए जाने के बारे में पूछे जाने पर कहा कि प्रधानमंत्री का यह कदम हास्यास्पद है। उन्होंने भाजपा के सांसदों और विधायकों को 8 नवंबर के बाद बैंकों से हुए लेनेदने का हिसाब देने को कहा है तो सवाल उठता है कि यह हिसाब नोटबंदी की घोषणा के पहले से क्यों नहीं मांगा जा रहा है। यदि सरकार कह रही है कि नोटबंदी की तैयारी पिछले छह महीने से चल रही थी तो हिसाब भी पिछले छह महीने का मांगा जाना चाहिए। साथ ही भाजपा को भी अपने चंदे का हिसाब देना चाहिए क्योंकि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मीट कंपनियों से इन्होंने 250 करोड़ रुपए चंदा लिया और बाद में गुलाबी क्रांति के नाम पर इस कारोबार को ही तहस-नहस करवा दिया।

मोदी, नीतीश में काफी कुछ समान
भट्टाचार्य ने नोटबंदी पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थन जबकि उनकी पार्टी जनता दल यूनाईटेड (जदयू) और महागठबंधन के अन्य घटक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के विरोध से उत्पन्न भ्रम के बारे में पूछे जाने पर कहा कि मोदी और कुमार में काफी कुछ समान है। एक कहते (मोदी) हैं कि नोटबंदी के कारण उनकी जान का खतरा है तो दूसरे (कुमार) कहते हैं कि विमुद्रीकरण को समर्थन देने के कारण लोग अटकलबाजियां लगाकर उनके राजनीति करियर को समाप्त करना चाहते हैं। हालांकि दोनों के लिए बेहतर तो यह होता कि वह अपनी कहना छोड़ जनता को हो रही परेशानियों का समाधान करने की कोशिश करते।

माले महासचिव ने देश के मौजूदा परि²श्य में विमुद्रीकरण की प्रासंगिकता के बारे में पूछे गये एक सवाल के जवाब में कहा कि यदि इसे अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण से देखा जाए तो वास्तव में यह ‘विमुद्रीकरण’ है ही नहीं क्योंकि इसे लागू करने से पहले विकल्प तैयार किया जाता। लेकिन, इस सरकार ने तो बिना कोई तैयारी किए रातोंरात पूरे देश पर नोटबंदी थोप दिया। सरकार के पास नए नोट नहीं हैं और जो सूचनाएं प्राप्त हो रहीं उसके मुताबिक अगले एक साल तक नए नोट की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पाएगी।

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