पांच साल में ही राज्य से बेदखल हो गई भाजपा
विकास के मुद्दे को लेकर चुनाव मैदान में उतरने वाली भाजपा राज्य में सत्ता बचाने में कामयाब नहीं हो पायी। सूत्रों की मानें तो दास का विकास सिर्फ जुमले में सुनाई देता था और विज्ञापनों में दिखता था, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि उनकी सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों पर ध्यान ही नहीं दिया। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि झारखंड में भाजपा की हार अहंकार की प्रवृत्ति का नतीजा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लोकसभा चुनाव में धमाकेदार जीत हासिल करने के बाद पहले महाराष्ट्र और अब झारखंड में सत्ता से बेदखल हो गई है। हरियाणा में भी मुश्किल से क्षेत्रीय दल के सहयोग से पार्टी सत्ता में आई है।
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इन मुद्दों को लेकर सरकार के खिलाफ थी नाराजगी
रांची विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जयप्रकाश खरे ने कहा शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों पर जो सरकार ध्यान नहीं देगी उसे इसी तरह का खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
कुछ लोगों का कहना है कि इस सरकार के दौरान मॉब लिंचिंग की घटना से भी लोग नाराज थे। उन्होंने कहा कि यह सरकार झारखंड के सामाजिक ताना-बाना को नहीं समझ पाई जिससे आदिवासी के साथ-साथ दूसरे समुदाय में भी असंतोष था। अगर अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया जाता तो भाजपा बेहतर स्थिति में रहती। उन्होंने कहा कि सरकार जिस विकास की बात करती थी वह शहरों तक ही सीमित थी, गांव विकास से महरूम था। उन्होंने कहा कि प्रदेश में भाजपा की सरकार से लोगों को जो उम्मीद थी उसे पूरा करने में यह सरकार विफल साबित हुई।