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गुजरात चुनाव: क्या राजनीति ने अपना धर्म चुन लिया!

locationनई दिल्लीPublished: Dec 03, 2017 01:36:30 pm

Submitted by:

ashutosh tiwari

इस बार गुजरात चुनाव में न तो मुस्लिमों के मुद्दे अहम हैं, न ही उनके नुमाइंदे चुनावी मैदान में हैं।

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मुकेश केजरीवाल/ नई दिल्ली। हर चुनाव मे सबसे बड़े अल्पसंख्यक के तौर पर मुसलमान याद किए जाते हैं। कभी डराया तो कभी भड़काया जाता है। लेकिन गुजरात चुनाव में भाजपा की तो छोडि़ए, खुद को सेकुलर कहने वाली कांग्रेस भी अपने शीर्ष नेता का ‘जनेऊ सर्टिफिकेट’ दिखा रही है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या गुजरात से हमारी राजनीति ने अपना एक धर्म स्वीकार कर लिया है। इस बार गुजरात चुनाव में न तो मुस्लिमों के मुद्दे अहम हैं, न ही उनके नुमाइंदे चुनावी मैदान में हैं। यहां जातियों के वोट पाने के लिए हर मुमकिन हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
इसी तरह हिंदू धर्मस्थलों पर ‘फोटो-ऑप’ के हर मुमकिन मौके तलाशे जा रहे हैं। लेकिन इसी दौरान मुस्लिम धर्मस्थल तो दूर मुस्लिम बहुल इलाकों तक से दूरी बनाई जा रही है। भाजपा ने इस बार भी एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा, तो कांग्रेस ने ५त्न से भी कम मात्र 7 सीट दिया है।
राजनीति?
एक दौर था, जब कांग्रेस गुजरात दंगों को दुनियाभर में उछालती थी। लेकिन इस नाम पर जितना विरोध हुआ, मोदी उतने मजबूत हुए।

मुस्लिमों पर प्रभाव
भड़काऊ भाषणों धार्मिक धु्रवीकरण व तनातनी का नुकसान हमेशा अल्पसंख्यक समुदाय को ही होता है। इसलिए अगर मुसलमानों को अलग से एक वोट बैंक नहीं मान कर उनकी विकास की जरूरत पूरी हो जाए तो यह उनके लिए आदर्श स्थिति हो सकती है। लेकिन व्यवहार में ऐसा होता नहीं है।
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चुनाव में फायदा किसे?
भाजपा अपनी पीठ थपथपा रही है कि उसने राहुल गांधी को मंदिर-मंदिर घूमने को मजबूर कर दिया है। उधर, कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता मानते हैं कि पार्टी ऐसी गलती नहीं करना चाहती, जिससे भाजपा को धु्रवीकरण का मौका मिले, क्योंकि ऐसे भी मुस्लिमों का वोट कांग्रेस को ही मिलेगा।
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