scriptपॉलिटिकल हॉर्स ट्रेडिंग: इन कारणों से देश में दशकों से जारी है जोड़तोड़ | Horse Trading: These reasons have continued for decades | Patrika News

पॉलिटिकल हॉर्स ट्रेडिंग: इन कारणों से देश में दशकों से जारी है जोड़तोड़

Published: May 16, 2018 03:14:10 pm

Submitted by:

Dhirendra

वर्ममान कानूनों के तहत पॉलिटिकल हॉर्स ट्रेडिंग को रोकना भारत में फिलहाल संभव नहीं।

horse trading
नई दिल्‍ली। वर्तमान भारत में दो हजार से अधिक राजनीतिक दल हैं। इन दलों में चुनाव जीतने को लेकर प्रतिस्‍पर्धा एक स्‍वाभाविक बात हैं, लेकिन चुनाव संपन्‍न होने के बाद हंग एसेंबली की स्थिति में हर बार पॉलिटिकल हॉर्स ट्रेडिंग का गेम जमकर होता है। विगत दो दिनों से कर्नाटक में भी यही सब हो रहा है। कांग्रेस ने भाजपा पर 100 करोड़ रुपए में विधायक को खरीदने का आरोप लगाया है। हालांकि एचआरडी मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने विपक्ष के इन आरोपों को झूठ का पुलिंदा बताया है। लेकिन ऐसे मौकों पर हॉर्स ट्रेडिंग भारतीय लोकतंत्र में कोई नई बात नहीं है। लेकिन अहम सवाल यह है कि क्‍या इस पर रोक लगाना संभव है, ताकि राजनीतिक भ्रष्‍टाचार पर लगा कसा जा सके।
रोक के लिए नहीं है कोई कानूनी प्रावधान
इस बारे में पूर्व नौकरशाह योगेंद्र नारायण का कहना है कि हंग एसेंबली की स्थिति में हॉर्स ट्रेडिंग कोई नई बात नहीं है। ऐसा दशकों से होता आया है। जहां तक इस पर रोक लगाने की बात है तो इसके लिए एंटी डिफेक्‍शन लॉ है। जब भी कोई एमपी, एमएलए और एमएलसी पार्टी के व्हिप के खिलाफ जाकर वोटिंग करता है तो उसके खिलाफ एंटी डिफेक्‍शन लॉ के तहत कार्रवाई होती है। इस कानून के तहत सदन कार्रवाई करती है और उसे अयोग्‍य करार दिया जाता है। लेकिन उसके खिलाफ कोई अन्‍य कानूनी कार्रवाई नहीं होती है। उसे सदन से अयोग्‍य करार दिया जाता है। फिलहाल जिस तरह से हॉर्स ट्रेडिंग होता है उसके रोकने के अन्‍य कोई कानूनी प्रावधान भारत में नहीं हैं। इसी का लाभ राजनेता और राजनीतिक दल समय-समय पर उठाते हैं।
सदन ही कार्रवाई का सक्षम प्राधिकारी
योगेंद्र नारायण ने पूर्व पीएम नरसिम्‍हा राव के कार्यकाल के दौरान एक हॉर्स ट्रेडिंग का जिक्र करते हुए कहा कि उक्‍त मामले में जब मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा तो अदालत ने उस पर सुनवाई की। सुनवाई पूरी होने के बाद अदालती आदेश चौकाने वाला आया। अदालत ने साफ कर दिया कि यह सदन का मामला है। इसलिए इस मामले में लोकसभा, राज्‍यसभा, विधानसभा और विधान परिषद ही कार्रवाई करने में सक्षम प्राधिकार है। अदालती प्रक्रिया के तहत सजा का प्रावधान नहीं है। शीर्ष अदालत ने उस समय अपने आदेश में कहा था कि अगर कोई जनप्रतिनधित पैसा लेकर संबंधित पार्टी के पक्ष में मतदान कर देता है तो उसके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई संभव नहीं है। उन्‍होंने कहा कि ऐसी स्थिति में सदन उसे अयोग्‍य करार दे सकता है।
2010 के एक मामले जारी है सीबीआई जांच
आपको बता दें कि ऐसे ही एक मामले में वर्ष 2010 में राज्यसभा चुनाव के समय एक मीडिया हाउस ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया था। ऑपरेशन के बाद चुनाव स्थगित करते हुए इसकी जांच निगरानी को सौंपी गई थी। बाद में इसकी जांच सीबीआई को सौंपा गया। मामले में सीबीआई के छापे भी पड़े थे। इस मामले में 06 तत्कालीन विधायकों को आरोपी बनाया गया है। आरोपी और कांग्रेस के पूर्व विधायक राजेश रंजन ने कहा कि मामले में सीबीआई के हाथ कोई सबूत नहीं लगा है। बावजूद इसके हाजरी देनी पड़ रही है। मामले का निबटारा जल्दी हो ताकि मानसिक तनाव से राहत मिल सके।
भारत में 2000 से ज्‍यादा हैं राजनीतिक दल
भारत में राजनीतिक दलों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। मार्च 2014 और इस वर्ष जुलाई के बीच चुनाव आयोग में करीब 239 नए संगठनों ने खुद को राजनीति दल के रूप में दर्ज कराया है। 2014 में नए संगठनों के दर्ज होने के बाद देश में राजनीतिक दलों की संख्या 1866 हो गई है। चुनाव आयोग के मुताबिक वर्तमा1866 राजनीतिक दल दर्ज हो गए थे। इनमें से 56 को पंजीकृत राष्ट्रीय या राज्य पार्टियां की मान्यता मिली। शेष ‘अमान्य, पंजीकृत’ पार्टियां हैं। आयोग द्वारा तैयार आंकड़े के अनुसार, वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में 464 राजनीतिक दलों ने अपने प्रत्याशी उतारे थे।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो