राहुल गांधी अपने पापा से सीख लेते तो नहीं करते संघ का विरोध
इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद संघ ने राजीव गांधी को समर्थन दिया था।

नई दिल्ली। यह बात सही है कि कांग्रेस पार्टी की विचाराधारा और संघ की सोच में आकाश-पाताल का अंतर है। इसके बावजूद संघ और कांग्रेस एक-दूसरे की समय-समय पर मतभेद करते रहे हैं। इतना ही नहीं, दोनों के बीच कभी खुलकर तो कभी परदे के पीछे से संवाद भी होता रहा है। महात्मा गांधी, इंदिरा, जय प्रकाश नारायण (जेपी), जनरल करिअप्पा, नरसिम्हा राव का भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संघ से संवाद होता रहा। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस के शासनकाल में संघ पर कहने को दो बार प्रतिबंध लगाया गया लेकिन किसी भी मौके पर इस बात की चर्चा कभी नहीं हुई कि आएसएस को हमेशा के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाए।
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संघ ने किया था राजीव का समर्थन
आपको ये बता दें कि साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी ने संघ नेताओं से गुप्त बैठकें की थी। वो आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस से मिले थे। राजीव गांधी ने देवरस के छोटे भाई भाऊराव देवरस के साथ भी आधा दर्जन बार मुलाकात की थी। परिणाम यह निकला कि संघ ने कांग्रेस को समर्थन दिया था। इसका प्रमाण चुनाव से पहले नानाजी देशमुख द्वारा लिखे गए लेख में मिलता है। यह लेख 25 नवंबर, 1984 को प्रतिपक्ष मैगजीन के अंक में छपा था। यह लेख प्रतिपक्ष मैगजीन में छपा था। इसमें उन्होंने इंदिरा की तारीफ की थी। इसमें उन्होंने राजीव को समर्थन देने की अपील की थी। इसके अलावा पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव पर भी संघ से नजदीकी होने का आरोप लगते रहे हैं।
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इन बातों पर गौर नहीं फरमाया
इन सभी बातों का जिक्र इसलिए हो रहा है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी आज शाम को संघ के कार्यक्रम में शामिल होंगे। नागपुर में आयोजित इस कार्यक्रम में वो स्वयंसेवकों को संबोधित करेंगे। कांग्रेस के नेताओं का इसमें शामिल होने को लेकर विरोध केवल इतना है कि प्रणब इसमें शामिल क्यों हो रहे है? लेकिन कांग्रेस के नेताओं की तरफ से उठे इस सवाल को भी वाजिब नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि इंदिरा से लेकर नरसिम्हा राव तक संघ से जुड़े रहे हैं। कांग्रेस के नेता अगर अपने इतिहास को भी खंगाल लेते तो इस बात को इतना तूल नहीं देते। इस बात पर राहुल गांधी को भी गौर फरमाना चाहिए था, जो उन्होंने नहीं किया। ये भी हो सकता है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें राजीव गांधी के आरएसएस से संबंध के बारे भी नहीं बताया हो। कांग्रेस की तरफ से इस बात को तूल देने का परिणाम यह सामने आया कि मीडिया में विगत 15 दिनों से यह मसला छाया हुआ है। प्रणब मुखर्जी सक्रिय राजनीति में न होते हुए भी चर्चा में बने हुए हैं।
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