विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा में उन्होंने कहा कि अगर संविधान नहीं होता तो उनके जैसे शोषित व्यक्ति का विधानसौधा में प्रवेश ही असंभव था। उन्होंने कहा कि संविधान के कारण से ही समाज के दलित शोषित तथा पिछड़ों को सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित होने के साथ यह वर्ग समाज की मुख्यधारा में शामिल होने का प्रयास कर रहा है।
उन्होंने कहा कि आजादी के 70 वर्षों के बाद भी हम समाज के इस वर्ग के साथ सामाजिक न्याय करने में विफल रहे हैं। इस समाज का संघर्ष का सफर काफी लंबा है। सामाजिक न्याय का सपना पूरा करने के लिए इस वर्ग को संगठित संघर्ष करना होगा।
उन्होंने कहा कि उनका परिवार निर्धन था। उनके पिता कृषि मजदूर थे। लेकिन, इसके बावजूद शिक्षा का महत्व समझते हुए उनके पिता निरक्षर होने के बावजूद उनको उच्च शिक्षा दिलाने के लिए काफी संघर्ष किया था। शिक्षा प्राप्त करने के कारण से ही वे राजनीति में इस मुकाम पर पहुंचे। अगर शिक्षा नहीं होती तो आज वे उनके समुदाय के अन्य लोगों की तरह मैसूरु जिले के सिद्धरामयनहुंडी गांव में भेड़ बकरियां चराते।