देश की आजादी के बाद से लेकर अब तक 26 से ज्यादा बार प्रधानमंत्रियों को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा है। इनमें से पांच अविश्वास प्रस्ताव सफल रहे हैं और 7 असफल। संसद के इतिहास में पहली बार अगस्त 1963 में जेबी कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था। तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू की सरकार के खिलाफ रखे गए इस प्रस्ताव के पक्ष में सिर्फ 62 वोट पड़े और विरोध में 347 वोट पड़े थे। पीएम मोरारजी देसाई की सरकार 1978 में अविश्वास प्रस्ताव की वजह से गिर गई थी।
संसद के इतिहास में सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ पेश किए गए। उनकी सरकार को ऐसे 15 प्रस्तावों का सामना करना पड़ा था। इस क्रम में लाल बहादुर शास्त्री और नरसिम्हा राव की सरकारों ने तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया था। नब्बे के दशक में विश्वनाथ प्रताव सिंह, एच डी देवेगौड़ा, आई के गुजराल और अटल बिहारी की सरकारें विश्वास प्रस्ताव हार गई थीं। 1979 में ऐसे ही एक प्रस्ताव के पक्ष में जरूरी समर्थन न जुटा पाने के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री चरण सिंह ने इस्तीफा दे दे दिया था। इसी तरह अटल बिहारी वाजपेयी 1996 में तो उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया और 1998 में वे एक वोट से हार गए। अब पीएम मोदी को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ रहा है।
वर्तमान में भाजपा के पास 271 सांसद हैं। कांग्रेस के 48, एआईएडीएमके के 37, टीएमसी के 34, बीजेडी के 20, शिवसेना के 18, टीडीपी के 16, टीआरएस के 11, सीपीएम के 9, वाईएसआर कांग्रेस के 9, समाजवादी पार्टी के 8 और शेष अन्य पार्टियों के सांसद हैं।