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क्या RLD के बाद AAP भी सपा से हाथ मिलाने को तैयार है?

locationनई दिल्लीPublished: Nov 24, 2021 03:37:26 pm

Submitted by:

Mahima Pandey

आम आदमी पार्टी यूपी में कुछ खास कमाल नहीं कर पाई है वहीं, सपा भी सत्ता के लिए जूझ रही है। अब इन दोनों के साथ आने से समाजवादी पार्टी की दावेदारी भाजपा के खिलाफ मजबूत होगी। इसके साथ ही अखिलेश विपक्षी पार्टियों में सबसे मजबूत दिखाई देंगे जिसका प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति में भी देखने को मिल सकता है।

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उत्तर प्रदेश में शब्दों के वार के साथ ही सियासी समीकरण और राजनीतिक गठजोड़ बनाए जाने लगे हैं। इस बीच सपा और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के बीच सीटों के शेरिंग का फार्मूला तय माना जा रहा। अब रालोद के बाद आम आदमी पार्टी भी समाजवादी पार्टी के साथ गठजोड़ कर सकती है। इसी सिलसिले में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और आम आदमी पार्टी के यूपी प्रभारी व राज्य सभा सदस्य संजय सिंह के बीच एक बार फिर मुलाकात हुई है। इस मुलाकात पर संजय सिंह के बयान ने भी इशारा कर दिया है कि आने वाले दिनों में आप और सपा के बीच गठजोड़ देखने को मिल सकता है।
सपा और AAP दोनों के लिए फायदे का सौदा

सत्ता पाने के लिए हर तरह के प्रयास में जुटी समाजवादी पार्टी को आम आदमी पार्टी के साथ जाने से फायदा हो सकता है। आम आदमी पार्टी का उद्देश्य यूपी में दिल्ली मॉडल के तहत विकास करना है। ऐसे में इस मॉडल का फायदा सपा को हो सकता है। संजय सिंह ने जोर देते हुए अपने बयान में कई बार कहा भी है कि ‘आप की प्राथमिकता दिल्ली के शासन मॉडल को उत्तर प्रदेश राज्य तक ले जाना है. प्रदेश की जनता को अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा, मुफ्त बिजली और रोजगार मुहैया कराना पार्टी के एजेंडे में होंगे।’ वहीं, उत्तर प्रदेश में राजनीतिक जमीन तलाशने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी को इससे बेहतर लॉन्च पैड नहीं मिलेगा, क्योंकि प्रदेश में सपा मुख्य विपक्षी पार्टी है। इस गठबंधन से आम आदमी पार्टी के लिए यहाँ खोने के लिए कुछ नहीं है, जबकि अखिलेश यादव के लिए साख का सवाल है।
कैसे बदलेंगे राजनीतिक समीकरण ?

आम आदमी पार्टी यूपी में कुछ खास कमाल नहीं कर पाई है वहीं, सपा भी सत्ता के लिए जूझ रही है। अब इन दोनों के साथ आने से समाजवादी पार्टी की दावेदारी भाजपा के खिलाफ मजबूत होगी। इसके साथ ही अखिलेश विपक्षी पार्टियों में सबसे मजबूत दिखाई देंगे जिसका प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति में भी देखने को मिल सकता है। वहीं, आम आदमी पार्टी के लिए प्रदेश के हर छोटे गावों में अपनी पहुँच बनाने का अवसर मिलेगा।
भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनावों में 403 सीटों में से 300 से अधिक सीटें जीती थीं, जबकि सपा को केवल 47 सीटें ही मिली थीं जो वर्ष 2012 के मुकाबले 177 कम थीं। तब आम आदमी पार्टी का प्रदेश में कोई खास जनाधार नहीं था। हाल ही में यूपी के जिला पंचायत के चुनावों में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर दिखा था। प्रदेश में पार्टी के 83 जिला पंचायत सदस्यों, 300 प्रधानों और 232 बीडीसी सदस्यों ने जीत दर्ज की जो विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बेहद अहम है। इसका अर्थ स्पष्ट है कि प्रदेश में आम आदमी पार्टी ने जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। आगामी चुनावों में यदि सपा और आम आदमी पार्टी साथ उतरते हैं तो चुनावी नतीजों में बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है।
दोनों पार्टियों के लिए ये फायदे का सौदा इसलिए भी है क्योंकि यहाँ आम आदमी पार्टी का कोई परंपरागत वोट बेस नहीं है, जबकि सपा का अपना कोर वोट बेस है। बसपा की भांति आम आदमी पार्टी का सपा के साथ जाना उसके मतदाताओं को नाराज नहीं करेगा। जिस तरह से आम आदमी पार्टी अयोध्या के दौरे कर रही और अब दिल्ली के बुजुर्गों के लिए अयोध्या जाना फ्री किया है, उससे प्रो हिन्दू छवि बनाने में केजरीवाल को थोड़ी सफलता अवश्य मिलेगी।
गौरतलब है कि सपा का मूल वोट बैंक यादव और मुस्लिम हैं जबकि आम आदमी पार्टी किसी एक धर्म या जाति पर आधारित नहीं है। इसलिए इस पार्टी की संभावनाएँ अन्य पार्टियों खासकर भाजपा के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। हो सकता है भाजपा के वोट बैंक में आप बड़ी सेंध लगाने में सफल हो जाये जिससे चुनावी नतीजे प्रभावित हो सकते हैं।
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बता दें कि संजय सिंह और अखिलेश यादव के बीच ये तीसरी मुलाकात थी। इससे पहले भी अखिलेश ने संजय सिंह से मुलाकात की थी और मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन पर भी दोनों के बीच मुलाकात हुई थी. इस मुलाकात पर संजय सिंह ने कहा कि सभी का उद्देश्य केवल भाजपा को हराना है। ये बयान गठबंधन की अटकलों को और हवा दे रहा है। हालांकि, सपा-आप में गठबंधन हुआ तो सपा, आम आदमी पार्टी और आरएलडी के बीच सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला क्या रहेगा ये अभी तय नहीं है।

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