दिल्ली और एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए केवल एक दो नहीं बल्कि कई कारण जिम्मेवार हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह दिल्ली और आसपास के इलाकों की भौगोलिक स्थिति भी है। पिछले दिनों एक वैज्ञानिक शोध के जरिए दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण की तमाम वजहें जानने की कोशिश की गई। इस कोशिश में जो बातें सामने आई हैं वो इस प्रकार हैं।
मौसम के लिहाज से दिल्ली लैंड लॉक्ड हिस्सा है। हिमालय का हिस्सा होने के कारण दिल्ली पर उत्तर भारत के मॉनसून का असर पड़ता है। यहां हवा की गति कम हो जाती है। इससे जहरीली हवा बाहर नहीं निकलत पातीं। दक्षिण भारत में हवा का प्रवाह तेज रहता है। दोनों तरफ समुद्र होने के कारण हवा में गति रहती है और प्रदूषण का उतना असर देखने को नहीं मिलता।
मौसम का असर भी प्रत्यक्ष तौर पर प्रदूषण पर होता है। मार्च से जून के बीच थार रेगिस्तान की धूल तेज हवाओं में घुल जाती है। यही धूल कण सर्दियों में धूल, धुआं, नमी सबकुछ घुल-मिल कर प्रदूषण को चरम पर पहुंचा देते हैं।
नासा के आंकड़ों के मुताबिक 2005 से 2014 के बीच दक्षिण एशिया में वाहनों, बिजली संयंत्रों और अन्य उद्योगों से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड भारी मात्रा में निकली। इसमें सबसे अधिक बढ़ोत्तरी गंगा के मैदानी इलाकों में दर्ज की गई। कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों में काफी इजाफा हुआ। इससे हवा में सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी हो गई है।
गंगा बेसिन में देश की करीब 40 प्रतिशत आबादी रहती है। ज्यादातर लोग आज भी लकड़ी और गोबर से बने उपलों से चूल्हा जलाकर खाना बनाते हैं। इससे काफी प्रदूषण फैलता है।