आपको बता दें कि करूणानिधि का गत सात अगस्त को निधन हो गया था। पार्टी में उन्हें फिर से शामिल किए जाने के उनके अनुरोध पर द्रमुक की चुप्पी पर अलागिरी ने हालांकि कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। अलागिरी, करूणानिधि की मौत के बाद से यह दावा करते रहे है कि पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता उनके साथ हैं। उन्होंने कहा था कि रैली के बाद डीएमके को खतरे का सामना करना पड़ेगा।
इससे पहले अलागिरी ने डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन के नेतृत्व को स्वीकार करने की इच्छा जताई थी। पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर एमके स्टालिन के साथ हुए विवाद के बाद करूणानिधि ने अलागिरी और उनके समर्थकों को 2014 में पार्टी से निष्कासित कर दिया था। तभी से दोनों भाईयों के बीच सियासी जंग जारी है, जो करुणानिधि के निधन के बाद से तेज हो गया है।