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गुजरात में बढ़ा दो-दलीय ध्रवीकरण, नुकसान कर सकने वाले वाघेला और केजरीवाल शांत

Published: Dec 09, 2017 08:23:02 am

Submitted by:

ashutosh tiwari

दो चरण वाले गुजरात चुनाव के पहले चरण के लिए प्रचार का शोर तो थम गया है, पर गहमा-गहमी नहीं।

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मुख्य रूप से दो ध्रुवीय राजनीति वाले गुजरात में पिछले दो बार से अन्य उम्मीदवारों में से आधा दर्जन को कामयाबी मिलती रही है। लेकिन इस बार मतदाता और ज्यादा सतर्क दिख रहा है। इस बार पूरे राज्य में कहीं भी घूमिए कांग्रेस-भाजपा के अलावा किसी तीसरे की कोई बात करता नहीं दिख रहा।
दो चरण वाले गुजरात चुनाव के पहले चरण के लिए प्रचार का शोर तो थम गया है, पर गहमा-गहमी नहीं। वोटरों को बूथ तक लाने की, बूथ प्रबंधन की और कार्यकर्ताओं के उत्साह को बनाए रखने की चुनौती सामने है। लेकिन इस बार पूरा चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच ही घूम रहा है।
पिछले चुनाव में 182 में 6 सीटें ऐसे उम्मीदवारों को मिली थी, जो इन दोनों पार्टियों के नहीं थे। केशूभाई पटेल ने अपनी गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा था तो साढ़े तीन फीसदी वोट और दो सीटें मिली थीं।
इस बार चुनाव लड़ रही पार्टियों में भाजपा-कांग्रेस को छोड़ बसपा अकेली है, जिसे पिछली बार एक फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे। उधर, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी भी इस बार मैदान में हैं। लेकिन मायावती ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। जब ओखी तूफान में बड़े नेता अपनी सभाएं रद्द कर रहे थे, तब भी वे रैलियां कर रही थीं।
राज्य के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रमुख रहे शंकर सिंह वाघेला ने जरूर इस बार पहले चरण की 89 सीटों में से 74 पर उम्मीदवार उतारे हैं। लेकिन उनका असर ज्यादातर उत्तर गुजरात में ही सीमित है। इन्होंने अपनी पार्टी जन विकल्प मोर्चा के नाम से बनाई है, लेकिन चुनाव ये राजस्थान में रजिस्टर्ड आल इंडिया हिंदुस्तान कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर उसी निशान पर लड़ रहे हैं। साथ ही वे बड़ी रैलियों और महंगे चुनाव से बच रहे हैं। अपने समर्थकों के साथ बैठकें और छोटी सभाएं ही कर रहे हैं।
भाजपा जहां सभी सीटों पर अकेले लड़ रही है, वहीं कांग्रेस ने राज्य में छह सीटें छोटू भाई बसावा की हाल में बनाई भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) को दी हैं। साथ ही इसने एक सीट जिग्नेश मेवानी के लिए छोड़ी है। पिछले दो चुनाव में क्रमश: 3 और 2 सीटें जीत चुकी एनसीपी की उम्मीदें भी इस बार सूरत को छोड़ दूसरे इलाकों से कुछ खास नहीं है। पिछले चुनाव उसने कांग्रेस के साथ गठबंधन में लड़े थे और इस दौरान यहां न तो पार्टी का कोई संगठन बना और न ही कोई प्रभावशाली नेता।
राज्य में सबसे पहले चुनावी तैयारियों में उतरने वाली ‘आप’ ने 2 साल पहले से ही यहां जमीन बनानी शुरू कर दी थी। खुद अरविंद केजरीवाल ने भी कई रैलियां कीं। मगर आखिरकार इसने सिर्फ 33 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। चुनाव के दौरान उन्होंने यहां का रुख तक नहीं किया है। ऐसे में पहले चरण में जिन इलाकों में चुनाव हो रहे हैं, वहां भाजपा-कांग्रेस के अलावा किसी और उम्मीदवार के समर्थक शायद ही मिलेंगे।
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