कर्नाटक में इस बार मुकाबला काफी दिलचस्प होता दिख रहा है। एक तरफ भारतीय जनता पार्टी इस बार के चुनाव में एक नए जोश और नए आत्मविश्वास के साथ उतर रही है तो वहीं कांग्रेस पार्टी के लिए अपनी नाक बचाने की चुनौती है। इसी का नतीजा है कि तारीखों के ऐलान से पहले ही कर्नाटक में राजनीतिक दल पसीना बहाने में जुटे हैं। कांग्रेस पार्टी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व में अपना दुर्ग बचाने में जुटी हुई है। तो वहीं बीएस येदियुरप्पा को सीएम फेस बनाकर बीजेपी भी इस बार कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे रही हैं। राज्य की एक और पार्टी जेडीएस ने बसपा के साथ गठबंधन कर सत्ता की बाजी जीतने के लिए अपनी दावेदारी भी मजबूत कर दी है।
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव को लेकर जातीय समीकरण बिठाए जाने लगे हैं। बीजेपी कर्नाटक में सिद्धारमैया के दुर्ग को क्षति पहुंचाने के लिए बीएस येदियुरप्पा के चेहरे को आगे कर रही है। सिद्धारमैया अपने दुर्ग को बचाने के लिए जातीय समीकरण को बिठाने में जुट गए हैं। खबरों की माने तो सिद्धारमैया बीजेपी को फंसाने के लिए पांच अस्त्रों का इस्तेमाल करने जा रही है। जिसमें बीजेपी बुरी तरह से फंसती हुई दिख रही है। कांग्रेस ने राज्य में बीजेपी की चाल को पलटने के लिए लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने की मांग को मानकर मास्टरस्ट्रोक चला है। राज्य में लिंगायत समुदाय काफी समय से हिंदू धर्म से अलग होने की मांग कर रहे थे। लिंगायत समुदाय की मांग है कि उन्हें अलग धर्म का दर्जा दिया जाए। कर्नाटक सरकार ने नागमोहन समिति की सिफारिशों को स्टेट माइनॉरिटी कमीशन एक्ट की धारा 2डी के तहत मंजूर कर किया है। इसकी अंतिम मंजूरी लेने के लिए सिद्धारमैया सरकार ने गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया है।
वहीं अगर सूबे में अल्पसंख्यकों की बात करे तो इनकी आबादी 13 फीसदी है। जिस पर कांग्रेस की अच्छी पकड़ है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपने पांच साल के कार्यकाल में मुसलमानों को बकायदा साधे रखा है। उत्तर कर्नाटक में मुस्लिमों को अच्छा दबदबा है। खासकर गुलबर्गा, बिदर, बीजापुर, रायचुर और धारवाड़ जैसे इलाकों में मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में रहता है। वहीं राज्य विधानसभा की कुल 224 सीटों में से करीब 60 पर मुस्लिम वोटरों का प्रभाव माना जाता है। दक्षिण कन्नड़, धारवाड़, गुलबर्गा वो इलाके हैं जहां 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। खास बात यह है कि शहरी इलाकों में मुस्लिम वोटर ज्यादा हैं, जबकि ग्रामीण इलाको में ये 8 फीसदी हैं।