इस घटना को लेकर पीएम ने एक मीडिया हाउस के प्रतिनिधि को साक्षात्कार दिया था। उनसे साक्षात्कार के दौरान गुजरात दंगों पर भी सवाल पूछे गए थे। साक्षात्कारकर्ता ने वाजपेयी जी से पूछा था कि आपने नरेंद्र मोदी जी को राजधर्म निभाने को कहा। इसके बावजूद बेस्ट बेकरी जैसा अदालती निर्णय आता है। इस निर्णय से लोगों को इंसाफ नहीं मिला। तो क्या यह मान लें कि यह आपकी कमजोरी थी? जवाब में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था आपने यह सवाल पूछकर बहुत अच्छा किया। जब मैं पहली दफा गुजरात हत्याकांड देखा, मैंने इसकी निंदा की थी। मैं कैंप में गया था। मेरा भाषण मौजूद है। तब तक मैंने जो हिंदू जिंदा जलाए गए थे, उनकी तस्वीर नहीं देखी थी। इसलिए जो कुछ हुआ, बहुत बुरा हुआ। इसके बावजूद मैं मानता हूं कि अगर हिंदू जलाए नहीं जाते, तो बाद में जो हत्याकांड हुआ, वह नहीं होता।
यह पूछे जाने पर कि आम आदमी को अभी तक इंसाफ नहीं मिला है? इस पर अटल जी बताया कि इस बात को मैं मानता हूं। सर्वोच्च न्यायालय कदम उठा रहा है। उम्मीद करना चाहिए कि सही साबित होंगे। आपकी इस बात पर आलोचना होती है कि एक चीज वे अहमदाबाद में कहेंगे, दूसरी चीज दूसरे जगह। इस पर अटल जी कहते हैं, ऐसा नहीं है। गुजरात में जब मैंने हत्याकांड देखा, मुझे नहीं पता था कि इस तरह से हिंदू जिंदा जलाए गए हैं। जब मैं गोवा पहुंचा तो पहली दफा वो बात मेरे सामने लाई गई। पहले मैं नहीं समझता था कि दंगा हुआ है। हिंदू-मुस्लिम मरे हैं। लेकिन जब वो तस्वीर मैंने देखी, तो मुझे लगा कि ये तो बहुत ज्यादा अन्याय हुआ है। लेकिन फिर भी उसका जवाब ये नहीं था कि मुसलमानों को मारा जाता।
आपके बारे में यह बार-बार कहा जाता कि जब कोई कड़ा फैसला लेना होता है तो वाजपेयी जी बीच का रास्ता चुनते हैं। जैसे की अयोध्या मामला। एक तरफ विश्व हिंदू परिषद आप पर दबाव डालती है दूसरी तरफ आप गठबंधन के प्रधानमंत्री हैं। ऐसी स्थिति में क्या होता है? इस पर वाजपेयी जी ने कहा कि इसमें समझौता करना पड़ता है। कीमत चुकानी पड़ती है। लेकिन लोगों को साथ लेकर चलना भी जरूरी है। ऐसा नहीं करने पर आप इतने विशाल और विविधता से पूर्ण देश में कुछ कर नहीं सकते हैं। मंदिर का मसला सुलझाना मेरा विषय नहीं था। समझौता का रास्ता निकाला जा सकता था। अयोध्या का मसला साधु-संगठनों और संतों के सहयोग से सुलझ सकता है।