पटना साहिब
यह सीट भाजपा के कब्जे में है। यहां से भाजपा के नाराज चल रहे शत्रुघ्न सिन्हा सांसद हैं। इसलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि इस सीट पर भाजपा या तो कोई नया चेहरा उतारेगी या इसे जेडीयू को दे सकती है। पटना साहिब संसदीय सीट परिसीमन के बाद बनी है और यहां हुए दो लोकसभा चुनावों 2009 और 2014 में भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा की जीत हुई है लेकिन बदली राजनीतिक परिस्थितियों में जेडीयू इस सीट पर अपना दावा ठोक रही है। इस संसदीय क्षेत्र में पिछड़ी जातियों की अच्छी आबादी है
यह सीट भाजपा के कब्जे में है। यहां से भाजपा के नाराज चल रहे शत्रुघ्न सिन्हा सांसद हैं। इसलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि इस सीट पर भाजपा या तो कोई नया चेहरा उतारेगी या इसे जेडीयू को दे सकती है। पटना साहिब संसदीय सीट परिसीमन के बाद बनी है और यहां हुए दो लोकसभा चुनावों 2009 और 2014 में भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा की जीत हुई है लेकिन बदली राजनीतिक परिस्थितियों में जेडीयू इस सीट पर अपना दावा ठोक रही है। इस संसदीय क्षेत्र में पिछड़ी जातियों की अच्छी आबादी है
मधेपुरा
इस सीट ये फिलहाल राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव सांसद हैं। 2014 में उन्होंने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन फिलहाल वो अपनी पार्टी बना चुके हैं। एनडीए में जेडीयू इस सीट पर अपना दावा ठोंक रही है क्योंकि यादव बहुल इस इलाके में कभी भी भाजपा की जीत नहीं हुई है। 2009 और 1999 में शरद यादव ने जेडीयू के टिकट पर ही यहां से जीत दर्ज की थी। इसलिए जेडीयू इस सीट को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।
इस सीट ये फिलहाल राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव सांसद हैं। 2014 में उन्होंने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन फिलहाल वो अपनी पार्टी बना चुके हैं। एनडीए में जेडीयू इस सीट पर अपना दावा ठोंक रही है क्योंकि यादव बहुल इस इलाके में कभी भी भाजपा की जीत नहीं हुई है। 2009 और 1999 में शरद यादव ने जेडीयू के टिकट पर ही यहां से जीत दर्ज की थी। इसलिए जेडीयू इस सीट को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।
मुंगेर
इस सीट पर फिलहाल रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा की वीणा सिंह सांसद हैं। प्रस्तावित फार्मूले में एलजेपी को यह सीट छोड़नी पड़ सकती है क्योंकि नीतीश की पार्टी जेडीयू वहां से अपना उम्मीदवार उतारना चाहती है। 2009 में जेडीयू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह वहां से सांसद रह चुके हैं। ललन सिंह को नीतीश कुमार का करीबी माना जाता है। इससे पहले भी 1999 में जेडीयू को यहां से जीत मिल चुकी है जबकि 1996 में नीतीश की तत्कालीन पार्टी समता पार्टी की इस सीट से जीत हुई थी।
इस सीट पर फिलहाल रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा की वीणा सिंह सांसद हैं। प्रस्तावित फार्मूले में एलजेपी को यह सीट छोड़नी पड़ सकती है क्योंकि नीतीश की पार्टी जेडीयू वहां से अपना उम्मीदवार उतारना चाहती है। 2009 में जेडीयू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह वहां से सांसद रह चुके हैं। ललन सिंह को नीतीश कुमार का करीबी माना जाता है। इससे पहले भी 1999 में जेडीयू को यहां से जीत मिल चुकी है जबकि 1996 में नीतीश की तत्कालीन पार्टी समता पार्टी की इस सीट से जीत हुई थी।
दरभंगा
यह सीट भाजपा के कब्जे में है। यहां से भाजपा छोड़ चुके कीर्ति झा आजाद सांसद हैं। पार्टी से निलंबित किए जाने के बाद अब इस सीट पर भाजपा नया उम्मीदवार खड़ा कर सकती है, जबकि जेडीयू की नजर इस सीट पर है क्योंकि कीर्ति से पहले इस सीट पर जनता दल और आरजेडी का कब्जा रहा है। कीर्ति आजाद ने जहां दरभंगा सीट पर 1999, 2009 और 2014 में जीत हासिल की थी, वहीं 1989, 1991, 1996, 1998 और 2004 में जनता दल और बाद में राष्ट्रीय जनता दल की जीत हुई थी।
यह सीट भाजपा के कब्जे में है। यहां से भाजपा छोड़ चुके कीर्ति झा आजाद सांसद हैं। पार्टी से निलंबित किए जाने के बाद अब इस सीट पर भाजपा नया उम्मीदवार खड़ा कर सकती है, जबकि जेडीयू की नजर इस सीट पर है क्योंकि कीर्ति से पहले इस सीट पर जनता दल और आरजेडी का कब्जा रहा है। कीर्ति आजाद ने जहां दरभंगा सीट पर 1999, 2009 और 2014 में जीत हासिल की थी, वहीं 1989, 1991, 1996, 1998 और 2004 में जनता दल और बाद में राष्ट्रीय जनता दल की जीत हुई थी।
झंझारपुर
यहां से भाजपा के वीरेंद्र कुमार चौधरी सांसद हैं लेकिन उनका रिपोर्ट कार्ड खराब रहा है। साल 2014 में मोदी लहर में पहली बार इस सीट पर भाजपा की जीत हुई थी। इससे पहले 2009 में जेडीयू के मंगनी लाल मंडल सांसद रह चुके हैं। उससे पहले भी छह संसदीय चुनावों में राजद या जनता दल के उम्मीदवारों की जीत हुई है। इस संसदीय क्षेत्र में पिछड़े और यादव वोटरों की अच्छी आबादी है।
यहां से भाजपा के वीरेंद्र कुमार चौधरी सांसद हैं लेकिन उनका रिपोर्ट कार्ड खराब रहा है। साल 2014 में मोदी लहर में पहली बार इस सीट पर भाजपा की जीत हुई थी। इससे पहले 2009 में जेडीयू के मंगनी लाल मंडल सांसद रह चुके हैं। उससे पहले भी छह संसदीय चुनावों में राजद या जनता दल के उम्मीदवारों की जीत हुई है। इस संसदीय क्षेत्र में पिछड़े और यादव वोटरों की अच्छी आबादी है।
बांका
यहां से राजद के जय प्रकाश नारायण यादव सांसद हैं। साल 2014 में उन्होंने भाजपा उम्मीदवार पुतुल कुमारी को करीब 10 हजार के मतों के अंतर से ही मात दी थी। लिहाजा भाजपा फिर से वहां अपना दावा ठोंक रही है, जबकि जेडीयू भी इस सीट पर अपना दावा ठोक रही है। जेडीयू का तर्क है कि इस सीट पर 1999 और 1998 में उनकी पार्टी के दिग्विजय सिंह की जीत हुई थी। बाद में 2009 में दिग्विजय सिंह ने निर्दलीय चुनाव जीता था। उनका निधन होने के बाद साल 2010 में दिग्विजय सिंह की पत्नी पुतुल कुमारी ने भी निर्दलीय चुनाव जीता था। बाद में वो भाजपा में शामिल हो गई थीं।
यहां से राजद के जय प्रकाश नारायण यादव सांसद हैं। साल 2014 में उन्होंने भाजपा उम्मीदवार पुतुल कुमारी को करीब 10 हजार के मतों के अंतर से ही मात दी थी। लिहाजा भाजपा फिर से वहां अपना दावा ठोंक रही है, जबकि जेडीयू भी इस सीट पर अपना दावा ठोक रही है। जेडीयू का तर्क है कि इस सीट पर 1999 और 1998 में उनकी पार्टी के दिग्विजय सिंह की जीत हुई थी। बाद में 2009 में दिग्विजय सिंह ने निर्दलीय चुनाव जीता था। उनका निधन होने के बाद साल 2010 में दिग्विजय सिंह की पत्नी पुतुल कुमारी ने भी निर्दलीय चुनाव जीता था। बाद में वो भाजपा में शामिल हो गई थीं।
जहानाबाद
संसदीय सीट से अरुण कुमार सांसद हैं। उन्होंने 2014 में रालोसपा के टिकट पर यहां से चुनाव जीता था लेकिन रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा और अरुण कुमार में इन दिनों छत्तीस का आंकड़ा है। लिहाजा माना जा रहा है कि अरुण कुमार तो इस सीट से लड़ेंगे लेकिन वो किस दल के टिकट पर लड़ेंगे। यह तय नहीं है। जेडीयू इस सीट पर अपना दावा टोंक रही है क्योंकि अरुण कुमार 1999 में जेडीयू के टिकट पर ही जीतकर संसद पहुंचे थे।
संसदीय सीट से अरुण कुमार सांसद हैं। उन्होंने 2014 में रालोसपा के टिकट पर यहां से चुनाव जीता था लेकिन रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा और अरुण कुमार में इन दिनों छत्तीस का आंकड़ा है। लिहाजा माना जा रहा है कि अरुण कुमार तो इस सीट से लड़ेंगे लेकिन वो किस दल के टिकट पर लड़ेंगे। यह तय नहीं है। जेडीयू इस सीट पर अपना दावा टोंक रही है क्योंकि अरुण कुमार 1999 में जेडीयू के टिकट पर ही जीतकर संसद पहुंचे थे।