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पूर्वोत्तर में खिलेगा कमल या हाथ को मिलेगा साथ?

locationनई दिल्लीPublished: Apr 15, 2019 10:55:03 pm

Submitted by:

Prashant Jha

2019 में 71.02 प्रतिशत हुआ मतदान
2014 में 74 प्रतिशत हुई थी वोटिंग
25 सीटों वाले पूर्वोत्तर में भाजपा गठबंधन को 11 सीटें मिली थीं

north east

नई दिल्ली। सत्ता के रण का पहला चरण 11 अप्रैल को संपन्न हो गया। मतदाताओं ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। पहले चरण में 18 राज्य और 2 केंद्र शासित प्रदेशों की 91 लोकसभा सीटों पर 69.4 फीसदी मतदान हुआ। जिन राज्यों में अप्रैल 11 को मतदान हुआ, उनमें से 8 राज्य तो पूर्वोत्तर के हैं। इनमें एक को छोड़कर सभी राज्यों में या तो भाजपा की सरकार है, या वह सत्ताधारी गठबंधन में शामिल है। भाजपा इन राज्यों में विकास के दावे और वादे लगातार करती आ रही है। इसके बाद भी यहां पिछली बार के मुकाबले वोटिंग कम हुई है, जानकार इसे भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं मान रहे हैं। हालांकि ब्रांड मोदी का प्रभाव नॉर्थ ईस्ट में कम हुआ है, ये भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन वोटिंग प्रतिशत के आंकड़ों पर नजर डालें, तो लगता है कि इन राज्यों में भाजपा की पकड़ कमोजर हुई है।

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नागरिकता संशोधन विधेयक का मुद्दा अहम

पूर्वोत्तर में नागरिकता संशोधन विधेयक का मुद्दा अहम रहा है। इसे लेकर राज्यों में कई बार सरकार और जनता आमने-सामने हुई है। हालांकि सरकार का दावा है कि नागरिकता संशोधन मुद्दे पर उन्हें जनता का भरोसा मिलता रहा है। पूर्वोत्तर के चुनाव विश्लेषक समुद्र गुप्त कश्यप का मानना है कि सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल को लेकर भारतीय जनता पार्टी को यहां कुछ नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। बांग्लादेश से आए रिफ्यूजियों को नागरिकता नहीं देने का असर चुनाव पर आंशिक रूप से हो सकता है। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि क्षेत्र में किए गए विकासकार्यों की वजह से मोदी सरकार को चुनाव में फायदा मिलने की पूरी संभावना है। रेलवे, सड़क ब्रिज समेत इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में किए गए काम से लोग खुश हैं।

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2019 में 2014 वाला परिणाम दोहराता नहीं दिख रहा

विश्लेषक का मानना है कि पूर्वोत्तर की अनदेखी आजादी के दौर से होती रही है। सरकार भले ही बदलती रही हो, लेकिन यहां के लोगों के जीवन स्तर पर कोई खास बदलाव नहीं हुआ। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से पूर्वोत्तर बदला हुआ दिखने लगा है। दरअसल 2014 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने ढाई दशक का रिकॉर्ड तोड़ते हुए केंद्र में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई थी। इसमें पूर्वोत्तर का भी अहम योगदान था। 25 सीटों वाले पूर्वोत्तर में से भाजपा गठबंधन को 11 सीटें मिली थीं। विश्लेषक कश्यप का मानना है कि वोटिंग प्रतिशत कम होने से सीटें कम मिले यह कोई जरूरी नहीं है। लेकिन हालिया वोट प्रतिशत पर नजर डालें तो 2019 में 2014 वाला परिणाम दोहराता नहीं दिख रहा। यह कहना गलत नहीं होगा कि 2019 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए की सरकार कमजोर पड़ सकती है। आइए आंकड़ों के जरिए समझते हैं, 2014 और 2019 में हुई वोटिंग के में अंतर…

यह हैं आंकड़े

क्रम सं.राज्य2019 (मतदान प्रतिशत)2014 (मतदान प्रतिशत)

असम68 %72.5 %

2

त्रिपुरा81.8 %84 %

3मणिपुर78.2 %80%

4मेघालय 66%67.16%67.16%

5अरुणाचल प्रदेश66%71%
6नागालैंड

78 %82.5 %
7मिजोरम

60 %60%
8सिक्किम

69 %76%

क्या पिट गई मोदी लहर या फिर हाथ को साथ मिलना शुरू हो गया

2014 में 91 सीटों पर 72 फीसदी वोटिंग हुई थी। जिसमें पूर्वोत्तर में 74 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार नॉर्थ ईस्ट में 71.02 प्रतिशत वोट डाले गए हैं। यानी 3 फीसदी कम मतदान हुआ है। पूर्वोत्तर भाजपा के लिए कभी बंजर था। लेकिन संघ और मोदी ने अपनी निरंतरता से इस बंजर में भी कमल खिलाया। वोटिंग प्रतिशत कम होने की वजह से कमल को खिलने के लिए जितने पानी की जरूरत है, वह उसे मिलता नजर नहीं आ रहा। ऐसे में क्या मोदी लहर पिट गई या फिर हाथ को मतदाताओं का साथ मिलना शुरू हो गया? क्योंकि ये इलाका एक दौर में कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा है। इस पर से परदा 23 मई को उठ जाएगा।

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