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रोजगार देने में फेल हुई मोदी सरकार, अब नीति आयोग ने आंकड़ों पर उठाए सवाल

Published: Jul 16, 2017 11:42:00 am

Submitted by:

ललित fulara

सरकार की नौकरी बढ़ाने वाली योजनाओं के दावे के बावजूद पिछले तीन वर्षों में बेरोजगारी बढ़ी है। आंकड़ों के अुनसार देश में बेरोजगारी 2013-14 में 4.9 फीसदी से 2015-16 तक 5 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। 

PM Modi

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नई दिल्ली। सरकार की नौकरी बढ़ाने वाली योजनाओं के दावे के बावजूद पिछले तीन वर्षों में बेरोजगारी बढ़ी है। आंकड़ों के अुनसार देश में बेरोजगारी 2013-14 में 4.9 फीसदी से 2015-16 तक 5 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। सरकार के कई सर्वे में नौकरी घटने की बात ही सामने आ रही है। अब नीति आयोग ने इन आंकड़ों पर ही सवाल उठा दिया है। आयोग की साइट पर गुरुवार को अपलोड एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में रोजगार से जुड़े सभी आंकड़े या तो बहुत पुराने हैं या गलत तरीक से इकट्ठे किए गए हैं। 
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पुराने आंकड़ों को गलत बताया
इस रिपोर्ट में पुराने सभी आंकड़ों को गलत बताते हुए 23 जुलाई से सुधारने के लिए उपाय पूछे गए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार श्रम मंत्रालय, नेशनल सैंपल सर्वेे और कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे के आंकड़े भ्रमित करने वाले हैं। आयोग का मानना है कि इसके लिए तकनीक के साथ नई प्रक्रिया अपनानी होगी। 
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नीति आयोग के सवाल
1- कुछ सर्वे पांच वर्षों में एक बार तो कुछ अनिश्चित अंतराल पर किए जाते हैं जो सही आंकड़े नहीं बताते। कभी तीन वर्ष के बाद तो कभी 7 वर्ष के बाद हुए।
2- आंकड़े इकट्ठे होने के बाद इन्हें जारी करने में कम से कम 1 वर्ष का समय लगता है। परिणाम की शुद्धता प्रभावित।
3- सरकारी सर्वे के वर्तमान ढांचे में सिर्फ पंजीकृत उद्यमों की जानकारी इकट्ठी की जाती है। जबकि गैरपंजीकृत उद्यमों की संख्या अधिक है।
4- सरकारी आंकड़ों में 20 से कम कर्मी वाले उद्यमों के आंकड़े नहीं लिए जाते हैं जबकि 79 फीसदी हैं ये कुल उद्यमों के।

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1.2 करोड़ हर वर्ष जुड़ते हैं रोजगार पाने की कतार
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1,61,167 घरों में किए गए कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे के अुनसार तेजी से बढ़ रही है बेरोजगारी। 120 लाख लोग हर वर्ष जुड़ जाते हैं रोजगार की कतार में श्रम मंत्रालय के अनुसार। 

मोदी सरकार का भयावह सच
– 15 लाख नौकरियां गई 2017 के पहले चार महीनों में।
– 40.65 करोड़ के पास रोजगार था जनवरी 2017 में।
– 40.50 करोड़ के पास नौकरी थी अप्रेल के अंत तक। 

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